पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/५२

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हूँ। क्योंकि भूतनाथ ने सुरंग के अन्दर आकर दरवाजा बन्द कर दिया था और अब मुझसे वह दरवाजा किसी तरह नहीं खुल रहा है। ईश्वर ने बड़ी कृपा की जो इस समय आपको यहाँ भेज दिया, चलिए पीछे हटिये, पहले मुझे दरवाजा खोलने की तरकीब बता दीजिए, और कुछ बातचीत पीछे होगी?

दारोगा—(हँसकर) अब तो मैं आ ही चुका हूँ, तुम क्यों घबराती हो? पहले यह तो वताओ कि वे दोनों ऐयार कहाँ हैं, जिनके पीछे-पीछे तुम यहाँ आई थी?

इस समय मायारानी की विचित्र अवस्था थी। वह मुँह से बातें तो कर रही थी मगर दिल में यही सोच रही थी कि किसी तरह राजा गोपालसिंह का भेद छिपाना चाहिए, जिसमें बाबाजी (दारोगा) को यह न मालूम हो कि मैंने वर्षों से गोपालसिंह को कैद कर रखा था, मगर इसके बचाव की कोई सूरत ध्यान में नहीं आती थी। वह अपने उछलते हुए कलेजे को दबाने की कोशिश कर रही थी, मगर वह किसी तरह दम नहीं लेता था। उसके चेहरे पर भी खौफ और तरद्दुद की निशानी पाई जाती थी। जो उस समय और भी ज्यादा हो गयी, जब बाबाजी ने यह कहा-"वे दोनों ऐयार कहाँ हैं जिनके पीछे-पीछे तुम यहाँ आई थीं?" आखिर लाचार होकर मायारानी ने बातें बना कर अपना काम निकालना चाहा और अपने को अच्छी तरह संभालकर बातचीत करने लगी।

मायारानी-(पीछे की तरफ इशारा करके) वे दोनों ऐयार उधर पड़े हुए हैं। मैंने अपनी हिकमत से उन्हें बेहोश करके छोड़ दिया है। केवल वे दोनों ही नहीं, बल्कि कमलिनी और लाड़िली भी मय एक ऐयार के मेरे फन्दे में आ पड़ी हैं जिनसे यकायक इसी सुरंग में मुलाकात हो गई थी।

बाबाजी-(चौंककर) कमलिनी और लाड़िली!

मायारानी-जी हां, शायद आपने अभी तक सुना नहीं कि लाड़िली भी कमलिनी से मिल गई।

बाबाजी-ओफ! यह खबर मुझे वहाँ क्योंकर मिल सकती थी, क्योंकि मैं ऐसे तहखाने में कैद था, जहाँ हवा का भी जाना मुश्किल से हो सकता था। खैर चलो, मैं जरा उन ऐयारों की सूरत तो देखूँ।

अब बाबाजी उधर बढ़े जहाँ राजा गोपालसिंह, कमलिनी, लाडिली और दोनों ऐयार बेहोश पड़े थे। बाबाजी के पीछे-पीछे मायारानी और नागर भी स्याह पत्थरों को बचाती हुई उसी तरफ बढ़ीं। वहाँ की जमीन में बनस्बित सफेद पत्थरों के स्याह पत्थर की पटरियां (सिल्ली) बहुत कम चौड़ी थीं। यद्यपि बाबाजी से मायारानी डरती-दबती और साथ ही इसके उनकी इज्जत और कदर भी करती, परन्तु इस समय उसकी अवस्था में फर्क पड़ गया था। वह धड़कते हुए कलेजे के साथ चुपचाप बाबाजी के पीछे जा रही थी। मगर अपना दाहिना हाथ तिलिस्मी खंजर के कब्जे पर, जो अब उसकी कमर में था, इस तरह रखे हुए थी, जैसे उसे म्यान से निकालकर काम में लाने के लिए तैयार। शायद इसका सबब यह हो कि वह बाबाजी पर वार करने का इरादा रखती थी क्योंकि उसे निश्चय था कि राजा गोपालसिंह को देखते ही बाबाजी बिगड़ खड़े होंगे और