पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/५३

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एक गुप्त भेद का, जिसकी उन्हें खबर तक न थी, पता लग जाने के कारण उसकी लानत और मलामत करेंगे। साथ ही इसके बाबाजी की चाल भी वेफिक्री की न थी, वह भी कनखियों से पीछे अगल-बगल देखते जाते थे और हर तरह से चौकन्ने मालूम पड़ते थे।

जब बाबाजी उन लोगों के पास आ पहुँचे, तो मोमबत्ती की रोशनी में एक-एक को अच्छी तरह देखने लगे। जब उनकी निगाह राजा गोपालसिंह पर पड़ी तो वे चौंके और मायारानी की तरफ देखकर बोले, "हैं, यह क्या मामला है! मैं अपनी आँखों के सामने किसे बेहोश पड़ा देख रहा हूँ!"

मायारानी-(लड़खड़ाई आवाज से) इसी के बारे में मैंने तो कहा था कि एक ऐयार भी आ फंसा है।

बाबाजी--ओफ, ये तो राजा गोपालसिंह हैं, जिन्हें मरे कई वर्ष हो गये, नहीं नहीं, मरा हुआ आदमी कभी लौटकर नहीं आता। (कुछ रुककर) यद्यपि दुःख या रंज के सबब से इनकी सूरत में फर्क पड़ गया है, परन्तु मेरे पहचानने में फर्क नहीं है। बेशक यह हमारे मालिक राजा गोपालसिंह ही हैं जिनकी नेकियों ने लोगों को अपना ताबेदार बना लिया था, जिनकी बुद्धिमानी और मिलनसारी प्रसिद्ध थीं, और जिसके सबब से इनकी ताबेदारी में रहना लोग अपनी इज्जत समझते थे। ओफ, तुमने इनके बारे में हम लोगों को धोखा दिया! यद्यपि तुम्हारी बुरी चाल-चलन को मैं खूब जानता था और जानबूझकर कई कारणों से तरह दिये जाता था, मगर मुझे यह खबर न थी कि उस चालचलन की हद यहाँ तक पहुँच चुकी है! (गोपालसिंह की नब्ज देखकर) शुक्र है कि मैं अपने मालिक को जीता पाता हूँ।

मायारानी-बाबाजी, आप जल्दी न कीजिए और बिना समझे-बूझे अपनी बातों से मुझे दुःख न दीजिए। जो मैं कहती हैं, उसे मानिये और विश्वास कीजिए कि यह वीरेन्द्रसिंह का ऐयार है और राजा की सूरत बनाकर कई दिनों से रिआया को भड़का रहा है। इसकी खबर मुझको बहुत पहले लग चुकी थी और मैंने मुनादी भी करा दी थी कि एक ऐयार राजा की सूरत बनाकर लोगों को भड़काने के लिए आया है, जो कोई उसका सिर काटकर मेरे पास लावेगा, उसे एक लाख रुपया इनाम दूँगी। आज इत्तिफाक ही से यह कम्बख्त मेरे पास हाथ आ फंसा है।

बाबाजी-(कुछ सोचकर) शायद ऐसा ही हो, मगर तुमने तो कहा था कि मैं भूतनाथ और देवीसिंह के पीछे-पीछे इस सुरंग में आई हूँ, फिर ये लोग तुम्हें कैसे मिले? क्या ये लोग पहले ही से सुरंग में मौजूद थे?

मायारानी–हाँ, जब मैं सुरंग में आ चुकी और भूतनाथ तथा देवीसिंह को बेहोश कर चुकी, उसके बाद शायद ये लोग (हाथ का इशारा करके) इस तरफ से यहाँ आ पहुँचे। उस समय बेहोशी वाली बारूद से निकला धुआँ यहाँ भरा हुआ था, जिसके सबब से ये लोग भी बेहोश होकर लेट गये।

बाबाजी-बेहोशी वाली बारूद से निकला हुआ धुआँ! क्या तुमने इन लोगों को किसी नई रीति से बेहोश किया है?

मायारानी-जब मैं दुःखी होकर अपने घर से भागी तो (तिलिस्मी तमंचा और

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