पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
54
 


बिगाड़ सकते? लो, मैं साफ-साफ कहे देती हूँ कि बेशक यह गोपालसिंह हैं। धनपत के साथ सुख भोगने और इनको सताकर तिलिस्म का भेद जानने के लिए मैंने इन्हें कैद कर रखा था, मगर कम्बख्त कमलिनी ने इन्हें कैद से छुड़ा दिया। अब मैं तुम्हारे सामने इन सभी का सिर काटकर अपना गुस्सा मिटाऊँगी और तुम मेरा कुछ भी नहीं कर सकते, अगर ज्यादा सिर उठाओगे तो (खंजर दिखाकर) इसी खंजर से पहले तुम्हारा काम तमाम करूँगी!"

बाबाजी-(हँसकर) बस-बस, बहुत उछल-कूद न करो। यद्यपि मैं बुड्ढा हूँ। तथापि तुम दो औरतों से किसी तरह हार नहीं सकता। मैं वही करूँगा, जो मेरे जी में आवेगा। यदि तुम इस तिलिस्म की रानी हो तो मैं भी तिलिस्म का दारोगा हूँ, मेरे पास भी अनूठी चीजें हैं, इसके अतिरिक्त तुम मुझसे बिगाड़ करके कुछ फायदा भी नहीं उठा सकती और अब तो तुमने साफ कबूल ही लिया कि...

मायारानी-(बात काटकर) हां-हाँ, कबूल लिया और फिर भी कहती हूँ कि तुम्हारे बिना मेरा कुछ हर्ज नहीं हो सकता। तुम्हें अपने दारोगापन की शेखी है तो देखो, मैं अपनी ताकत तुमको दिखाती हूँ।

इतना कह कर मायारानी ने तिलिस्मी खञ्जर का कब्जा दबाया। उसमें से बिजली की तरह चमक पैदा हुई और जब कब्जा ढीला किया तो चमक बन्द हो गई, मगर बाबाजी पर इसका कुछ असर न हुआ जिससे मायारानी को बड़ा ताज्जुब हुआ। आखिर उसने बेहोश करने की नीयत से तिलिस्मी खञ्जर बाबाजी के बदन से लगाया मगर इससे भी कुछ नतीजा न निकला, बाबाजी ज्यों के त्यों खड़े रह गए। अब तो मायारानी के ताज्जुब का कोई ठिकाना न रहा और वह घबराकर बाबाजी का मुँह देखने लगी। अगर तिलिस्मी खंजर में से चमक न पैदा होती तो उसे शक होता कि यह तिलिस्मी खंजर शायद वह नहीं है जिसकी तारीफ भूतनाथ ने की थी मगर अब वह इस खंजर पर किसी तरह का शक भी नहीं कर सकती थी।

बाबाजी--(हँसकर) कहो मेरा घमण्ड वाजिब है या नहीं?

मायारानी-(तिलिस्मी खंजर की तरफ देखकर) शायद इसमें कुछ...

बाबाजी--(बात काटकर) नहीं-नहीं, इस खंजर के गुण में किसी तरह का फर्क नहीं पड़ा। मैं इस खंजर को खूब जानता हूँ। यद्यपि तुम्हारे लिए यह एक नई चीज है परन्तु मैं अपने (राजा गोपालसिंह की तरफ इशारा करके) इस मालिक की बदौलत इसी प्रकार और गुण के कई खंजर, कटार, तलवार और नेजे देख चुका हूँ और उनसे काम भी ले चुका हूँ, मगर जब मैं तिलिस्मी कामों में सिद्ध के बराबर हो गया तब मेरे दिल से ऐसी तुच्छ चीजों की कदर और इज्जत जाती रही। तुम देखती हो कि इस खंजर का मुझ पर कुछ भी असर नहीं होता। असल तो यह है कि तुम मेरी ताकत को नहीं जानती हो, तुम्हें नहीं मालूम है कि खाली हाथ रहने पर भी मैं क्या-क्या कर सकता हूँ! बस मैं अपनी ताकत का हाल खोलना उचित नहीं समझता, परन्तु अफसोस, तुम मुझी को मारने के लिए तैयार हो गई! खैर, कोई चिन्ता नहीं, आज तक मैं तुम्हारी इज्जत करता रहा, और तुमने जो कुछ भला-बुरा किया उसे देखकर भी तरह देता गया, मगर