अब देखता हूँ तो तुम
मायानानी-(बात काटकर) सुनिए-सुनिए, आप जो कुछ कहेंगे मैं समझ गई। मेरी यह नीयत न थी और न है कि आपकी जान लूँ क्योंकि केवल आप ही के भरोसे पर मैं कूद रही हूँ, और आप ही की मदद से बड़े-बड़े बहादुरों को मैं कुछ नहीं समझती। यह तो साफ जाहिर है कि थोड़े ही दिन आप मुझसे अलग रहे और इसी बीच में मेरी सब दुर्दशा हो गयी। मैं आपको पिता के समान मानती हूँ इसलिए आशा है कि (हाथ जोड़ कर) इस समय जो कुछ मुझसे भूल हो गई उसे आप बाल-बच्चों की भूल के समान मानकर क्षमा करेंगे, मगर इस कसूर से मेरा असल मतलब सिर्फ इतना ही था कि किसी तरह राजा गोपालसिंह के मारने पर आपको राजी करूँ।
बाबाजी पर तिलिस्मी खंजर का कुछ भी असर न होते देख मायारानी का कलेजा धड़कने लगा, वह बहुत डरी और उसे विश्वास हो गया कि तिलिस्मी कारखाने में जितना बाबाजी का दखल और जानकारी है उसका सोलहवां हिस्सा भी उसकी नहीं है और उसी के साथ तिलिस्मी चीजों से बाबाजी ने बहुत कुछ फायदा भी उठाया है। यह भी उसी फायदा का असर है कि राजा वीरेन्द्रसिंह की कैद से सहज ही में छूट आए और ऐसे अद्भुत तिलिस्मी खंजर को तुच्छ समझते हैं तथा इसका असर इन पर कुछ भी नहीं होता। अब वह इस बात को सोचने लगी कि ऐसे बाबाजी से बिगाड़ करना उचित नहीं बल्कि जिस तरह हो सके उन्हें राजी करना चाहिए, फिर मौका मिलने पर जैसा होगा देखा जाएगा।
ऐसी-ऐसी बहुत-सी बातें मायारानी तेजी के साथ सोच गई और उसी सबब से वह अधीनता के साथ बाबाजी से बात करने लगी। जब वह अपनी बात खत्म करके चुप हो गई तो बाबाजी ने मुस्कुरा दिया और कुछ सोचकर कहा, खैर मैं तुम्हारे इस कसूर को माफ करता हूँ मगर यह नहीं चाहता कि राजा गोपालसिंह को किसी तरह की तकलीफ हो जिन्हें मुद्दत के बाद आज मैं इस अवस्था में देख रहा हूँ।"
मायारानी-तब आपने माफ ही क्या किया? यद्यपि आपको इस बात का रंज है कि मैंने गोपालसिंह के साथ दगा की और यह भेद आपसे छिपा रक्खा मगर आप भी तो जरा पुरानी बातों को याद कीजिए! खास करके उस अंधेरी रात की बात जिसमें मेरी शादी और पुतले की बदलौअल हुई थी! वह सब कर्म तो आप ही का है! आप ही ने मुझे यहाँ पहुँचाया। अब अगर मेरी दुर्दशा होगी तो क्या आप बच जाएँगे? फिर मान लिया जाय कि आप गोपालसिंह को बचा भी लें तो क्या 'लक्ष्मीदेवी' का बच के निकल जाना आपके लिए दुःखदायी न होगा? और जब इस बात की खबर गोपालसिंह को होगी तो क्या वे आपको छोड़ देंगे? बेशक जो कुछ आज तक मैंने किया है सब आप ही का कसूर समझा जायगा। मैंने, इस बात का पता न लग जाय कि दरोगा की करतूत ने लक्ष्मीदेवी की जगह
इतना कहकर मायारानी चुप हो गई और बड़े गौर से बाबाजी की सूरत देखने लगी, मानो इस बात का पता लगाना चाहती है कि बाबाजी के दिल पर उसकी बातों का क्या असर हुआ। दरोगा साहब भी मायारानी की बातें सुनकर तरद्दुद में पड़ गए