सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
56
 


और न मालम क्या सोचने लगे। थोड़ी देर बाद दरोगा ने सिर उठाया और मायारानी की तरफ देख कर कहा, "अच्छा, अब विशेष बातों की कोई जरूरत नहीं है। मैं वादा करता हूँ कि गोपालसिंह के बारे में तुम पर किसी तरह का दबाव न डालूँगा और इससे न करूँगा कि इनके मारने का विचार न करके थोड़े दिनों तक इन्हें कैद ही ज्यादा कु में रखना आवश्यक है, बल्कि कमलिनी, लाडिली, भूतनाथ और देवीसिंह को भी कैद ही में रखना चाहिए। हाँ जब मैं उन आफतों को दूर कर लूँ जिनके कारण तुम्हें अपना जोड़ना पड़ा और तुम्हें फिर उसी दर्जे पर पहुँचा दूँ तब जो तुम्हारे जी में आवे करना। बस-बस, इसमें दखल मत दो और जो मैंने कहा है उसे करो नहीं तो तुम्हें पूरा सुख कदापि न मिलेगा!"

मायारानी–खैर ऐसा ही सही, मगर यह तो कहिए कि इन लोगों को कैद कहाँ कीजिएगा?

बाबाजी-इसके लिए मेरा बँगला बहुत मुनासिब है। मायारानी और मेरे रहने के लिए कौन-सा ठिकाना सोच रक्खा है?

बाबाजी-वाह, क्या तुम समझती हो कि तुम्हें बहुत दिनों तक अपने राज्य से अलग रहना पड़ेगा? नहीं, दो ही तीन दिन में मैं उन सभी का मुँह काला करूँगा जो तम्हारे नौकर होकर तमसे खिलाफ हो रहे हैं और तम्हें फिर उसी दर्जे पर बिठाऊँगा जिस पर मेरे सामने तुम थीं, हाँ, एक चीज के बिना हर्ज जरूर होगा।

मायारानी-वह क्या? शायद आपका मतलब अजायबघर की ताली से है!

बाबाजी-हाँ, मेरा मतलब अजायबघर की ताली से ही है, क्या तुम उसे अपने महल ही में छोड़ आई हो?

मायारानी-जी नहीं, यह मेरे पास है, जब मैं लाचार होकर अपने घर से भागी तो एक यही चीज थी जिसे मैं अपने साथ ला सकी।

बाबाजी-वाह-वाह, यह बड़ी खुशी की बात तुमने कही। अच्छा वह ताली मेरे हवाले करो तो और कुछ बातें होंगी।

मायारानी-(अजायबघर की ताली बाबाजी को देकर) लीजिए तैयार है, अब जहाँ तक जल्द हो सके यहाँ से निकल चलना चाहिए।

बाबाजीहाँ-हाँ, मैं भी यही चाहता हूं, भला यह तो कहो कि यह तिलिस्मी खंजर तुमने कहाँ से पाया? मायारानी—यह तिलिस्मी खंजर कमलिनी ने भूतनाथ और गोपालसिंह को दिया था जो इस समय इन सभी के बेहोश हो जाने पर मुझे मिला। एक तो मैंने ले लिया और दूसरा नागर को दे दिया है। मैंने सुना है कि इसी तरह के और भी कई खंजर कमलिनी ने अपने साथियों को बांटे हैं मगर मालूम नहीं इस समय वे कहाँ हैं।

बाबाजी-ठीक है, खैर यह काम तुमने बहुत ही अच्छा किया कि अजायबघर की ताली अपने साथ लेती आईं, नहीं तो बड़ा हर्ज होता।

मायारानी-जी हाँ। मायारानी अजायबघर की ताली के बारे में भी दरोगा से झूठ बोली। यद्यपि