पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
6
 


हुआ एक मकान था जिसमें दस हाथ की कुर्सी के ऊपर चालीस खम्भों का केवल एक अपूर्व कमरा था जिसके बीचोंबीच में दस हाथ के घेरे का एक गोल खम्भा था और उस पर तरह-तरह की तस्वीरें बनी हुई थीं। बस, इसके अतिरिक्त देवमन्दिर में और कोई बात न थी। उस देवमन्दिर वाले कमरे में जाने के लिए जाहिर में कोई रास्ता न था, इसके सिवाय एक बात यह और थी कि कमरा चारों तरफ से परदेनुमा ऊँची दीवारों से ऐसा घिरा हुआ था कि उसके अन्दर रहने वाले आदमियों को बाहर से कोई देख नहीं सकता था। उस देवमन्दिर के चारों तरफ थोड़ी-सी जमीन में बाग की पक्की क्यारियाँ बनी हुई थीं और उनमें तरह-तरह के पेड़ लगे हुए थे, मगर ये पेड़ भी सच्चे न थे, बल्कि एक प्रकार की धातु के बने थे और असली मालूम होने के लिए उन पर तरह-तरह के रंग चढ़े हुए थे, यदि इस खयाल से उसे हम बाग कहें तो हो सकता है और ताज्जुब नहीं कि इन्हीं पेड़ों की वजह से वह हिस्सा वाग के नाम से पुकारा भी जाता हो। उस नकली बाग में दो-दो आदमियों के बैठने लायक कई कुर्सियाँ भी जगह-जगह बनी हुई थीं।

उन क्यारियों के चारों तरफ छोटी-छोटी कई कोठरियाँ और मकान भी बने थे जिनका अलग-अलग हाल लिखना इस समय आवश्यक नहीं, मगर उन चार मकानों का हाल लिखे बिना काम न चलेगा जो कि देवमन्दिर या यों कहिए कि इस नकली बाग के चारों तरफ एक-दूसरे के मुकाबले में बने हुए थे और जिन चारों ही मकानों के बगल में एक-एक कोठरी और कोठरी से थोड़ी दूर के फासले पर एक-एक कुआँ भी बना हुआ था।

पूरब की तरफ वाले मकान के चारों तरफ पीतल की ऊँँची दीवार थी इसलिए उस मकान का केवल ऊपर वाला हिस्सा दिखाई देता था और कुछ मालूम नहीं होता था कि उसके अन्दर क्या है, हाँ छत के ऊपर एक लोहे का पतला महराबदार खम्भ निकला हुआ जरूर दिखाई दे रहा था जिसका दूसरा सिरा उसके पास वाले कुएँँ के अन्दर गया हुआ था। उस मकान के चारों तरफ जो पीतल की दीवार थी उसी में एक बन्द दरवाजा भी दिखाई देता था जिसके दोनों तरफ पीतल के दो-दो आदमी हाथ में नंगी तलवारें लिए खड़े थे।

पश्चिम तरफ वाले मकान के दरवाजे पर हड्डियों का एक बड़ा-सा ढेर था और उसके बीचोंबीच में लोहे की एक जंजीर गड़ी थी जिसका दूसरा सिरा उसके पास वाले कुएँँ के अन्दर गया था।

उत्तर तरफ वाला मकान गोलाकार स्याह पत्थरों का बना हुआ था और उसके चारों तरफ चखियाँँ और तरह-तरह के कल-पुर्जे लगे हुए थे। इसी मकान के पास वाले कुएँ के अन्दर मायारानी अपने पति का काम तमाम करने के लिए गई थी।

दक्खिन की तरफ वाले मकान के ऊपर चारों कोनों पर चार बुर्जियाँ थीं और उनके ऊपर लोहे का जाल पड़ा था। उन चारों बुर्जियों पर (जाल के अन्दर) चार मोर न मालूम किस चीज के बने हुए थे जो हर वक्त नाचा करते थे।

आज उसी देवमन्दिर के कमरे में दोनों कुमार, कमलिनी, लाड़िली और ऐयार लोग बैठे आपस में कुछ बातें कर रहे हैं। रिक्तगन्थ अर्थात् किसी के खून से लिखी हुई किताब कुँँअर इन्द्रजीतसिंह के हाथों में है और वह बड़े प्रेम से उसकी जिल्द को देख रहे