हैं, मगर अभी तक उस किताब को पढ़ने की नौबत नहीं आई है। कमलिनी मुहब्बत की निगाह से इन्द्रजीतसिंह को देख रही है और उसी तरह लाड़िली भी छिपी निगाहें कुँँअर आनन्दसिंह पर डाल रही है।
कमलिनी―(इन्द्रजीतसिंह से) अब आपको चाहिए कि जहाँ तक जल्द हो सके यह रिक्तगंथ पढ़ जायँ।
इन्द्रजीतसिंह―हाँ, मैं भी यही चाहता हूँ, परन्तु पहले उन कामों से छुट्टी पा लेनी चाहिए जिनके लिए तेजसिंह चाचा को और ऐयारों को हम लोग यहाँ तक साथ लाए हैं।
कमलिनी—मैं इन लोगों को केवल रास्ता दिखाने के लिए यहाँ तक लाई थी सो काम तो हो ही चुका, अब इन लोगों को यहाँ से जाना और कोई नया काम करना चाहिए और आपको भी रिक्तग्रंथ पढ़ने के बाद तिलिस्म तोड़ने में लग जाना चाहिए।
इन्द्रजीतसिंह―राजा गोपालसिंह ने कहा था कि किशोरी और कामिनी को छुड़ा कर जब हम आ जायँ तब तिलिस्म तोड़ने में हाथ लगाना। इसके अतिरिक्त तेजसिंह चाचा से मुझे राजा गोपालसिंह के छुड़ाने का हाल सुनना भी बाकी है।
तेजसिंह―उस बारे में कुछ हाल तो मैं आपसे कह भी चुका हूँ!
आनन्दसिंह―जी हाँ, आप वहाँ तक कह चुके हैं जब (कमलिनी की तरफ देख कर) ये चंडूल की सूरत बनाकर आपके पास आई थीं, मगर हमें यह न मालूम हुआ कि इन्होंने हरनामसिंह, बिंहारीसिंह और मायारानी के कान में क्या कहा जिसे सुन सभी की अवस्था बदल गई थी। जहाँ तक मैं समझता हूँ, शायद इन्होंने राजा गोपालसिंह के ही बारे में कोई इशारा किया होगा।
कमलिनी–जी हाँँ, यही बात है। राजा गोपालसिंह को कैद करने में हरनामसिंह और बिहारीसिंह ने भी मायारानी का साथ दिया था और धनपत इस काम की जड़ है।
इन्द्रजीतसिंह―(हँस कर) धनपत इस काम की जड़ है!
कमलिनी―जी हाँ, मैं बोलने में भूलती नहीं, धनपत वास्तव में औरत नहीं है बल्कि मर्द है। उसकी खूबसूरती ने मायारानी को फँसा लिया और उसी की मुहब्बत में पड़ कर उसने यह अनर्थ किया था। ईश्वर ने धनपत का चेहरा ऐसा बनाया है कि वह मुद्दत तक औरत बन कर रह सकता है। एक तो वह नाटा है। दूसरे अठारह वर्ष की अवस्था हो जाने पर भी दाढ़ी-मूँँछ की निशानी नहीं आई। लेकिन जनानी सूरत होने पर भी उसमें ताकत बहुत है।
इन्द्रजीतसिंह―(ताज्जुब से) यह तो एक नई बात तुमने सुनाई। अच्छा तब?
लाड़िली―क्या धनपत मर्द है?
कमलिनी―हाँ, और यह हाल मायारानी, बिहारीसिंह और हरनामसिंह के सिवाय और किसी को मालूम नहीं है। कुछ दिन बाद मुझे मालूम हो गया था, मगर आज के पहले यह हाल मैंने भी किसी से नहीं कहा था। इसी तरह राजा गोपालसिंह का हाल भी उन चारों के सिवाय और कोई नहीं जानता था और जब कोई पाँँचवाँँ आदमी