पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/७०

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अब कुमार उन दरवाजों की तरफ गौर से देखने लगे जो चारों तरफ की दीवारों में दिखाई दे रहे थे। उन दरवाजों में केवल चार दरवाजे चार तरफ असली थे और बाकी के दरवाजे नकली थे अर्थात् चार दरवाजों को छोड़ कर बाकी दरवाजों के केवल निशान दीवारों में थे मगर ये निशान भी ऐसे थे कि जिन्हें देखने से आदमी पूरापूरा धोखा खा जाय।

कुमार पूरब तरफ की दीवार की ओर गये और उस तरफ जो दरवाजा था उसे जोर से लात मार कर खोल डाला, इसमें बाद बाएँ तरफ के कोने में जो मूरत थी उसे बगल में दाव उठाना चाहा मगर वह उठ न सकी क्योंकि उनके दाहिने हाथ में वह चमकता हआ तिलिस्मी खंजर था, आखिर कूमार ने खंजर कमर में रख लिया। यद्यपि ऐसा करने से वहाँ पूर्ण रूप से अन्धकार हो गया मगर कुमार ने इसका कुछ विचार न करके अँधेरे ही में दोनों हाथ उस मूरत की कमर में फंसा कर जोर किया और उसे जमीन से उखाड़ कर धीरे-धीरे उस दरवाजे के पास लाए जिसे लात मार कर खोला था। जब चौखट के पास पहुँचे तो उस मूरत को जहाँ तक जोर से बन पड़ा दरवाजे के अन्दर फेंक दिया और फुर्ती से तिलिस्मी खंजर हाथ में ले रोशनी करके सीढ़ी की राह कोठरी के बाहर निकल आये अर्थात् फिर उसी बाग में चले आये और मन्दिर से कुछ दूर हट कर खड़े हो गये।

थोड़ी देर तो कुमार को ऐसा मालूम हुआ कि जमीन कांप रही है और उसके अन्दर बहुत-सी गाड़ियाँ दौड़ रही हैं। आखिर धीरे-धीरे कम होकर ये दोनों बातें जाती रहीं। इसके बाद कुमार फिर मन्दिर के अन्दर हो गए और सीढ़ियों की राह उस तहखाने में उतर गए जहां पहले गए थे। इस समय वहाँ तिलिस्मी खंजर की रोशनी की कोई आवश्यकता न थी क्योंकि इस समय कई छोटे-छोटे सूराखों में से रोशनी बखूबी आ रही थी जिसका पहले नाम-निशान भी न था। कुमार चारों तरफ देखने लगे मगर पहले की बनिस्बत कोई नई बात दिखाई न दी। आखिर पूरब तरफ की दीवार के पास गए और उस दरवाजे के अन्दर झांक के देखा जिसे लात मार कर खोला था या जिसके अन्दर मूरत को जोर से फेंका था। इस समय इस कोठरी के अन्दर भी चांदना था और वहाँ की हर एक चीज दिखाई दे रही थी। यह कोठरी बहुत लम्बी-चौड़ी न थी मगर दीवारों में छोटे-छोटे कई खुले दरवाजे दिखाई दे रहे थे, जिससे मालूम होता था कि यहाँ से कई तरफ जाने के लिए सुरंग या रास्ता है। कुमार ने उस मूरत को गौर से देखा जिसे उस कोठरी के अन्दर फेंका था। उस मूरत की अवस्था ठीक वैसी हो रही थी जैसी कि चने की कली की उस समय होती है जब थोड़ा-सा पानी उस पर छोड़ा जाता है, अर्थात् टूट-फूट के वह बिल्कुल ही बर्बाद हो चुकी थी। उसके पेट में एक चमकती हई चीज दिखाई दे रही थी जो पहले तो उसके पेट के अन्दर रही होगी मगर अब पेट फट जाने के कारण बाहर हो रही थी। कुमार ने वह चमकती हुई चीज उठा ली और तहखाने के बाहर निकल मन्दिर के मण्डप में बैठ कर सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए।

थोड़ी ही देर बाद धमधमाहट की आवाज से मालूम हुआ कि मन्दिर के अन्दर