पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/७४

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बैठी! यद्यपि उस इशारे से वह कुछ समझ न सकेगा परन्तु जिस समय गोपालसिंह के सामने लक्ष्मीदेवी का नाम लेगा और वे बातें कहेगा जो मैंने उस दारोगा रूपधारी ऐयार से कही थीं तो वह बखूबी समझ जायगा और मेरे विषय में उसका क्रोध सौगुना हो जायगा। यदि मेरे बारे में वह किसी तरह की बदनामी समझता भी था, तो अब न समझेगा। हाय, अब जिन्दगी की कोई आशा न रही।

नागर--लक्ष्मीदेवी का नाम ले के जो कुछ तुमने कहा, उससे मुझे भी शक हो गया है। क्या असल में

मायारानी-ओफ, यह भेद सिवाय असली दारोगा के किसी को भी मालूम नहीं। आज—(कुछ रुक कर) नहीं, अब भी मैं उस भेद को छिपाने का उद्योग करूँगी और तुझसे कुछ भी न कहूँगी, बस अब लक्ष्मीदेवी का नाम तुम मेरे सामने मत लो। (चिट्ठी की तरफ इशारा करके) अच्छा इस चिट्ठी को तुम एक दफा फिर से पढ़ जाओ।

नागर ने वह चिट्ठी उठा ली जिसके पढ़ने से मायारानी की वह हालत हुई थी और पुनः उसे पढ़ने लगी--

चिट्ठी--

बरे कामों का करने वाला कदापि सुख नहीं भोग सकता। तू समझती होगी कि मैं राजा गोपालसिंह, देवीसिंह, भूतनाथ, कमलिनी और लाड़िली को मारके निश्चिन्त हो गई, अब मुझे सताने वाला कोई भी न रहा। इस बात का तो तुझे गुभान भी न होगा कि मैं सुरंग में असली दारोगा से नहीं मिली, बल्कि ऐयारों के गुरू-घंटाल तेजसिंह से मिली जो दारोगा के भेष में था, और यह बात भी तुझे सूझी न होगी कि दारोगा वाले मकान के उड़ जाने से कैदियों को कुछ भी हानि नहीं हुई बल्कि वे लोग अजायबघर की चाबी की बदौलत जो सुरंग में मैंने तुझसे ले ली थी और भोजन तथा जल पहँचाने के समय कैदियों को होश में लाकर दे दी थी, निकल गये। अहा, परमात्मा, तु धन्य है! तेरी अदालत बहुत सच्ची है। ऐ कम्बख्त मायारानी, अब तू सब कुछ इसी से समझ जा कि मैं वास्तव में तेजसिंह हूँ।

तेरा

जो कुछ तू समझे-तेजसिंह"

इस चिट्ठी को सुनते ही मायारानी का सिर घूमने लगा और वह डर के मारे थर-थर काँपने लगी। थोड़ी देर चुप रहने के बाद वह उठ बैठी और नागर की तरफ देख कर बोली

मायारानी-यह तेजसिंह भी बड़ा ही शैतान है। इसने दो दफा भारी धोखा दिया। अफसोस, अजायबघर की ताली हाथ में आकर फिर निकल गई, केवल ये दोनों तिलिस्मी खंजर मेरे हाथ में रह गये, मगर इनसे मेरी जान नहीं बच सकती। सबसे ज्यादा अफसोस तो इस बात का है कि लक्ष्मीदेवी वाला भेद अब खुल गया और यह बात मेरे लिए बहुत ही बुरी हुई। (कुछ सोच कर) हाय, अब मैं समझी कि इस तिलिस्मी खंजर का असर तेजसिंह पर इसलिए नहीं हुआ कि उसके पास भी जरूर इसी तरह का