पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/७९

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अब जरा उन कैदियों की सुध लेनी चाहिए, जिन्हें नकली दारोगा ने दारोगा वाले बँगले में मैगजीन की बगल वाली कोठरी में बन्द किया था। वास्तव में वह तेजसिंह ही थे, जो दारोगा की सुरत बनाकर मायारानी से मिलने और उसके दिल का भेद लेने जा रहे थे, मगर जब दारोगा वाले बंगले पर पहुँचे तो मायारानी की लौंडियों तथा लाली की जुबानी मालूम हुआ कि दो आदमियों के पीछे-पीछे मायारानी और नागर टीले पर गई हैं। तेजसिंह उस टीले का हाल बखूबी जानते थे और सुरंग की राह बाग के चौथे दरजे में आने-जाने का भेद भी उन्हें बता दिया गया था, इसलिए उन्हें शक हुआ और वे सोचने लगे कि मायारानी जिन दो आदमियों के पीछे-पीछे टीले पर गई है, कहीं वे दोनों हमारी तरफ के ऐयार ही न हों जो बाग के चौथे दर्जे में जाने का इरादा रखते हों, यदि वास्तव में ऐसा हो तो निःसन्देह मायारानी के हाथ से उन्हें कष्ट पहुँचेगा। यह सोचते ही तेजसिंह भी उसी टीले की तरफ रवाना हुए और यही सबब था कि सुरंग में दारोगा की शक्ल बने हुए तेजसिंह की मायारानी से मुलाकात हुई थी और उसके बाद जो कुछ हुआ ऊपर लिखा ही जा चुका है।

मैगजीन की बगल वाली कोठरी में कैदियों को कैद करने के बाद जब खाने-पीने का सामान लेकर तेजसिंह उस तहखाने में गये तो कैदियों को होश में लाकर संक्षेप में सब हाल कह दिया था और अजायबघर की ताली जो मायारानी से वापस ली थी, राजा गोपालसिंह को देकर कहा कि इस ताली की मदद से जहाँ तक हो सके आप लोग यहाँ से जल्द निकल जाइये। गोपालसिंह ने जवाब दिया था कि "यदि यह ताली न मिलती तो भी हम लोग यहाँ से निकल जाते क्योंकि मुझे यहाँ का पूरा-पूरा हाल मालूम है और अब आप हम लोगों की तरफ से निश्चिन्त रहिये, मगर चौबीस घण्टे के अन्दर मायारानी का साथ न छोड़िये और न उसे कोई काम इस बीच में करने दीजिये, इसके बाद हम लोग स्वयं आपको ढूंढ़ लेंगे।"

इस दारोगा वाले बँगले का हाल केवल तेजसिंह को ही नहीं, बल्कि हमारे और भी कई ऐयारों को मालूम था। क्योंकि कमलिनी ने, जो कुछ भी वह जानती थी, सभी को बता दिया था। अब जब तेजसिंह दारोगा वाले बँगले से चले तो राजा गोपालसिंह और कमलिनी इत्यादि को ढूंढ़ने के लिए उत्तर की तरफ रवाना हुए। वे जानते थे कि मैगजीन की बगल वाली कोठरी से निकलकर वे लोग उत्तर की तरफ ही किसो ठिकाने बाहर होंगे।

तेजसिंह कोस भर से ज्यादा नहीं गये होंगे कि रात की पहली अँधेरी ने चारों तरफ अपना दखल जमा लिया। जिसके सबब से वे उन लोगों को बखूबी ढूंढ़ न सकते थे और न उन लोगों का ठीक पता ही था, तथापि उन्हें विशेष कष्ट न उठाना पड़ा क्योंकि थोड़ी ही दूर जाने के बाद देवीसिंह से मुलाकात हो गई, जो इन्हीं को ढूंढने के लिए जा