पर नहीं है, स्वयं उसे अपना राज्य छोड़ना बल्कि मुँह छिपाकर भागना पड़ा, धन-दौलत रहते भी कंगाल होना पड़ा, वह कल रानी थी, आज उसके पास एक पैसा नहीं है, कल तक उससे लाखों आदमी डरते थे, आज उससे एक लौंडी भी नहीं डरती, कल सैकड़ों आदमियों की जान उसके हुक्म से ले ली जा सकती थी, मगर आज वह खुद एक लौंडी का कुछ नहीं कर सकती। यह उसके बुरे कर्मों का फल था। इसके सिवाय और क्या कहा जाय?
मनोरमा मायारानी की सखी थी, और यह नागर मनोरमा की मुँह-लगी और मायारानी की लौंडी समझी जाती थी। मायारानी के हाथ से मनोरमा और नागर ने लाखों रुयये पाये। यह मकान, रुआब और दबदबा मनोरमा और नागर का मायारानी ही की बदौलत था। यही नागर मायारानी की सैकड़ों गालियाँ बर्दाश्त करती थी, भला या बुरा जो कुछ मायारानी उसे कहती थी, मानना पड़ता था, मगर आज जब मायारानी किसी योग्य न रही, जब मायारानी धन-दौलत से खाली हो गई, जब मायारानी की ताकत न रही, तो वही नागर बकरी से बाधिन हो गयी, बल्कि नागर की लौंडियों की नजरों में भी मायारानी की इज्जत न रही। अब नागर को मायारानी से कुछ पाने की आशा तो रही ही नहीं, बल्कि यह मौका आ गया कि नागर खुद रुपये से मायारानी की मदद करे, इसलिए झट नागर की आँख बदल गई और वह बात का बतंगड़ बनाकर जान लेने के लिए तैयार हो गई। नागर की लौंडियाँ जो इस लड़ाई का हाल सुनकर आ पहुँची थीं, नागर का दिया हुआ खाती थीं, और इस समय मायारानी को भी अच्छी निगाह से नहीं देखती थीं। इसलिए ये सब सिवाय नागर और किसी की मदद करना नहीं चाहती थीं, मगर तिलिस्मी खंजरों के सबब से इस लड़ाई के बीच में पड़ने से लाचार थीं। हाँ, जब दोनों लड़ाकियां ठहर जातीं और खंजर का कब्जा ढीला पड़ने के कारण चमक बन्द हो जाती तो वे लौंडियाँ नागर की मदद करने को जरूर तैयार हो जातीं।
आखिर नागर ने मायारानी से ललकार के कहा, "देख मायारानी, तू इस समय मझसे लड़कर नहीं जीत सकती। यदि मैं तेरे सामने से भाग भी जाऊँ और काशीराज के पास जाकर तेरा सब हाल कह दूँ तो तुझे इसी समय गिरफ्तार करके राजा वीरेन्द्रसिंह के पास भेज देंगे और तुझसे कुछ भी करते-धरते न बन पड़ेगा। तू इस समय यहाँ छिपकर बैठी हई है, किसी को भी तेरे हाल की खबर होगी तो तेरे लिए अच्छा न होगा। मगर मैं पुरानी दोस्ती पर ध्यान देकर तुझे माफ करती हूँ और साथ ही इसके आज्ञा देती हैं कि इसी समय यहाँ से भाग जा और जिस तरह अपनी जान बचा सके बचा।"
नागर की बातें सुनकर मायारानी रुक गई और थोड़ी देर तक कुछ सोचती रही, अंत में तिलिस्मी खंजर कमर में रख शीघ्रता से कमरे के बाहर होते से निकल गई। और न मालूम कहाँ चली गई। नागर ने इधर-उधर देखा तो दारोगा को भी न पाया। आखिर मालूम हुआ कि वह भी मौका देखकर भाग निकला, और न जाने कहाँ चला गया।