पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
86
 


रहीं इसलिए मेरी भी राय है कि कमलिनी और लाड़िली को साथ लेकर मैं अपने घर जाऊँ और वहाँ से दोनों कुमारों को मदद पहुंचाने का उद्योग करूँ जो इस समय तिलिस्म के अन्दर जा पहुंचे हैं, क्योंकि यद्यपि तिलिस्म का फैसला उन दोनों के हाथों होना ब्रह्मा की लकीर-सा अटल हो रहा है तथापि मेरी मदद पहुँचने से उन्हें विशेष कष्ट न उठाना पड़ेगा। इसके साथ मैं यह भी चाहता हूँ कि किशोरी और कामिनी को भी अपने तिलिस्मी बाग ही में बुलाकर रक्खूं...

कमलिनी-जी नहीं, मैं तिलिस्मी बाग में तब तक नहीं जाऊँगी जब तक कम्बख्त मायारानी से अपना बदला न ले लूँगी और अपनी बहिन को, यदि वह अभी तक इस दुनिया में है, न ढूंढा निकालूँगी। किशोरी और कामिनी का भी आपके यहाँ रहना उचित नहीं है इसे आप अच्छी तरह गौर करके सोच लें। उनकी तरफ से आप निश्चिन्त रहें, तालाब वाले मकान में जो आज कल मेरे दखल में है, उन्हें किसी तरह की तकलीफ न होगी। मैं हाथ जोड़ के प्रार्थना करती हूँ कि आप मेरी प्रार्थना स्वीकार करें और मुझे अपनी राय पर छोड़ दें।

गोपालसिंह—(कुछ सोचकर) तुम्हारी बातों का बहुत-सा हिस्सा सही और बाजिब है मगर बेइज्जती के साथ तुम्हारा इधर-उधर मारे-मारे फिरना मुझे पसन्द नहीं। यद्यपि तुम्हें ऐयारी का शौक है और तुम इस फन को अच्छी जानती हो मगर मेरी और इसी के साथ किसी और की इज्जत पर भी ध्यान देना उचित है। यह बात मैं तुम्हारी गुप्त इच्छा को अच्छी तरह समझकर कहता हूँ। मैं तुम्हारी अभिलाषा में बाधक नहीं होता बल्कि उसे उत्तम और योग्य समझता हूँ

कमलिनी—(कुछ शर्मा कर) उस दिन आप जो चाहें मुझे सजा दें जिस दिन किसी की जुबानी, जो ऐयार या उन लोगों में से न हो जिनके सामने मैं हो सकती हूँ, आप यह सुन पावें कि कमलिनी या लाड़िली की सूरत किसी ने देख ली या दोनों ने कोई ऐसा काम किया जो बेइज्जती या बदनामी से सम्बन्ध रखता है।

गोपालसिंह-(तेजसिंह से) आपकी क्या राय है?

तेजसिंह-मैं इस विषय में कुछ भी न बोलूँगा, हाँ, इतना अवश्य कहूँगा कि यदि आप कमलिनी की प्रार्थना स्वीकार कर लेंगे तो मैं अपने दो ऐयारों को इनकी हिफाजत के लिए छोड़ दूँगा।

गोपालसिंह -जब आप ऐसा कहते हैं तो मुझे कमलिनी की बात माननी पड़ी। खैर, थोड़े से सिपाही इनकी मदद के लिए मैं भी मुकर्रर कर दूँगा।

कमलिनी-मुझे उससे ज्यादा आदमियों की जरूरत नहीं है जितने मेरे पास थे, हाँ आप उन लोगों को एक चिट्ठी मेरे जाने के बाद अवश्य लिख दें कि 'हम इस बात से खुश हैं कि तुम इतने दिनों से कमलिनी के साथ रहे और रहोगे।' हाँ इसके साथ एक काम और भी चाहती हूँ।

गोपालसिंह-वह क्या?

कमलिनी-जब मैंने अपना किस्सा आपसे बयान किया था तो यह भी कहा था कि मायारानी ने तिलिस्मी मकान के जरिए से कुमार और उनके ऐयारों के साथ-ही-