पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/९१

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खंजर था और उंगली में उसके जोड़ की अँगूठी मौजूद थी। नागर ने उस आये हुए आदमी की तरफ देखकर कहा-"तुम किसके भेजे हुए आये हो और तुम्हारा क्या नाम है? मुझे खयाल आता है कि मैंने तुम्हें कहीं देखा है मगर याद नहीं पड़ता कि कब और कहाँ!"

इस आदमी की उम्र लगभग चालीस या पैंतालीस वर्ष के होगी। इसका कद लम्बा और शरीर दुबला मगर गठीला, रंग गोरा, चेहरा खूबसूरत और रोबीला था। बड़ी-बड़ी मूंछे दोनों किनारों से ऐंठी और घूमी हुई थीं। आँखें बड़ी और इस समय कुछ लाल थीं। पोशाक यद्यपि बेशकीमत न थी मगर साफ और अच्छे ढंग की थी। चुस्त पायजामा घुटने के चार अंगुल नीचे तक का, चपकन और उस पर से एक ढीला चोगा पहने और सिर पर भारी मुँड़ासा बाँधे हुए था। सरसरी निगाह से देखने पर वह कोई छोटा या बदरोब आदमी नहीं कहा जा सकता था।

नागर की बात सुन कर वह आदमी कुछ मुस्कराया और बोला, "केवल इतना ही नहीं, आप अभी बहुत कुछ मुझसे पूछेगी मगर मैं किसी के सामने आपकी बातों का जवाब नहीं दिया चाहता, क्योंकि मैं एक नाजुक काम के लिए आया हूँ। यदि किसी तरह का खौफ न हो तो (सिपाही और लौंडियों की तरफ इशारा करके) इनको हट जाने के लिए कहिए और फिर जो कुछ चाहे पूछिए, मैं साफ जवाब दूँगा।"

उस आदमी की बात सुन कर नागर ने अपने तिलिस्मी खंजर की तरफ देखा जो कमर से लटक रहा था, मानो उस खंजर पर उसे बहुत भरोसा है और इसके बाद सिपाही तथा लौंडियों को वहाँ से हट जाने का इशारा करके बोली, "नहीं-नहीं, मुझे तुमसे खौफ खाने का कोई सबब मालूम नहीं होता।"

आदमी—(सिपाही और लौंडियों के हट जाने के बाद) हाँ, अब जो कुछ आपको पूछना हो पूछिए, मैं जवाब दूँगा।

नागर-मैं फिर पूछती हूँ कि तुम किसके भेजे हुए आये हो और तुम्हारा नाम क्या है? मैंने तुम्हें कहीं-न-कहीं अवश्य देखा है।

आदमी-मेरा नाम श्यामलाल है और तुमने मुझे उस समय देखा होगा जब तुम्हारा नाम 'मोतीजान' था और तुम बाजार में कोठे के ऊपर बैठ कर अपने कटाक्षों से सैकड़ों को घायल किया करती थीं। रंडियों के लिए यह मामूली बात है कि जब विशेष दौलत हो जाती है, तब वे उन दोस्तों को भूल जाती हैं, जिनसे किसी जमाने में थोड़ी रकम पाई हो, चाहे वह उस समय कितना ही गाढ़ा मुलाकाती क्यों न रह चुका हो। मैं यह ताने के ढंग पर नहीं कहता, बल्कि इस उम्मीद पर कहता हूँ कि पुरानी मुलाकात की याद कर मुझे माफ करोगी क्योंकि इस समय तुम एक ऊँचे दर्जे पर हो।

नागर-(नाक-भौं सिकोड़ कर, जिससे मालूम होता था कि श्यामलाल की बातों से वह कुछ चिढ़ गई है) हाँ खैर, मैंने तुम्हें पहचाना। अच्छा अब बताओ कि तुम क्या चाहते हो?

श्यामलाल-(मुस्करा कर) बस यही चाहता हूँ कि तुम मुझे विदा करो और चुपचाप यहाँ से चले जाने दो।