पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/९२

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नागर--नहीं-नहीं, मेरा यह मतलब नहीं है। मैं उस चिट्ठी का भेद जानना चाहती हूँ, जो मेरे सिपाही के हाथ तुमने भेजी है और जिसमें केवल इतना ही लिखा है कि 'लक्ष्मीदेवी के प्रकट हो जाने से अनर्थ हो गया, अब मायारानी और उसके पक्षपातियों को एक दम भाग कर अपनी जान बचाना उचित है।' (चिट्ठी दिखा कर) देखो, यही है न!

श्यामलाल-हाँ, यही है, मगर इसमें यह भी लिखा है कि 'नहीं तो बारह घंटे के बाद फिर कुछ करते-धरते न बन पड़ेगा।'

नागर-हाँ ठीक है, यह भी लिखा है। मगर यह बताओ कि लक्ष्मीदेवी कौन है और उसके प्रकट हो जाने से हमारा क्या नुकसान है?

श्यामलाल—(ताज्जुब से नागर का मुँह देख कर) क्या तुम लक्ष्मीदेवी वाला भेद नहीं जानती हो? क्या यह भेद मायारानी ने तुमसे छिपा रखा है? खैर, अगर यह बात है, तो मैं भी इस भेद को खोलना उचित नहीं समझता। अच्छा, यह तो बताओ

मायारानी कहाँ है, मैं उससे कुछ कहना चाहता हूँ।

नागर-क्या मायारानी तुम्हारे सामने हो सकती है? क्या तुम नहीं जानते कि उनका दर्जा कितना बड़ा है, और उन्हें कोई गैर मर्द नहीं देख सकता!

श्यामलाल—मैं सब कुछ जानता हूँ और यह भी जानता हूँ कि वह मुझसे पर्दा न करेगी।

नागर–शायद ऐसा ही हो, लेकिन इस समय वह किसी काम से गई हैं, और यहाँ नहीं हैं।

श्यामलाल-अगर ऐसा ही है, तो मैं भी जाता हूँ और तुमसे कहे जाता हूँ कि जहाँ तक हो सके जल्द भाग कर अपनी जान बचाओ।

यह कह कर श्यामलाल पीछे की तरफ लौटा मगर नागर ने उसे रोक कर कहा, "सुनो तुम अभी कह चुके हो कि हमारे पुराने दोस्त हो, तो क्या तुम मुझ पर कृपा करके और पुरानी दोस्ती को याद करके लक्ष्मीदेवी वाला भेद मुझे नहीं बता सकते? क्या तुम साफ-साफ नहीं कह सकते कि हम लोगों पर क्या आफत आने वाली है?"

श्यामलाल–बेशक मैं तुम्हारी दोस्ती का इकरार कर चुका हूँ और अब भी यह कहता हूँ कि अभी तक तुम्हारी मुहब्बत ने मेरा साथ नहीं छोड़ा है मगर (कुछ सोच कर) अच्छा लो, मैं एक चिट्ठी देता हूँ, इसके पढ़ने से तुम्हें सब हाल मालूम हो जायगा मगर कोठरी के दरवाजे पर पड़े हुए परदे की तरफ देख कर) मुझे शक है कि इस परदे के अन्दर से कोई लौंडी छिप कर न देखती हो।

नागर--नहीं-नहीं, ऐसा कभी नहीं हो सकता। लो, मैं तुम्हारा शक दूर किये देती हूँ।

यह कह कर नागर ने आगे बढ़कर वह पर्दा किनारे कर दिया और कोठरी का दरवाजा बन्द कर लिया। श्यामलाल ने नागर की तरफ चिट्ठी बढ़ा कर कहा, "देखो, मैं निश्चय करके आया था कि यह चिट्ठी सिवाय मायारानी के और किसी के हाथ में न दूँगा, क्योंकि उसे मैं दिल से चाहता हूँ और उसी की खातिर इतना कष्ट उठा कर