पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/९५

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अपना भेद जरूर कहती और अपना भेद कहती तो इस चिट्ठी का मतलब भी तुम जरूर समझ जातीं-मगर उसने अदना से अदना भेद भी छिपा रखा जिसके बताने में कोई हानि न थी।

नागर--ठीक है, मुझे भी यही विश्वास होता है। मगर जब मुझ पर दया करके यह कह रहे हो कि जल्दी यहाँ से भाग कर अपनी जान बचाओ, तो कृपा कर इसका सबब भी बता दो, क्योंकि मुझे कुछ भी नहीं सूझता कि मैं भाग कर कहाँ जाऊँ और इस जायदाद के बचाने का क्या उद्योग करूँ?

श्यामलाल-इसका जवाब मैं कुछ भी नहीं दे सकता, क्योंकि मैं अगर तुम्हें कोई तरकीब बताऊँ या अपने साथ चलने के लिए कहूँगा तो तुम्हें मुझ पर अविश्वास होगा क्योंकि तुम बहुत दिनों के बाद मुझे आज देख रही हो सो भी ऐसे समय में जब तुम्हारा दिल राजकीय विषयों की उलझन में हद से ज्यादा उलझा हुआ है, परन्तु इतना कह देने में मेरी कोई हानि भी नहीं है कि राजा गोपालसिंह के लिखे बमूजिम काशिराज इस मकान को अपने कब्जे में कर लेने के बाद यहाँ के रहने वालों को कैद कर लेंगे। गोपालसिंह ने सुना था कि मायारानी इस मकान में टिकी हुई है। इसलिए यह कार्रवाई और भी जोर के साथ की गई, मगर इतनी खैरियत है कि अभी तक वह आदमी इस शहर में नहीं पहुँचा जिसे राजा गोपालसिंह ने चिट्ठी देकर काशिराज के पास भेजा है। हाँ आशा है कि सवेरा होते-होते वह शहर में आ पहुँचेगा। (कुछ सोच कर) क्या करें, आज तुम्हें देख कर तुम्हारी मुहब्बत फिर से नई हो गई। खैर, अगर तुम चाहोगी तो मैं तुम्हारी कुछ मदद इस समय भी कर सकूँगा।"

नागर-अगर इस समय तुम मेरी सहायता करोगे तो मैं जन्म भर तुम्हारा अहसान न भूलूँगी। मैं कसम खाकर कहती हूँ कि मैं तुम्हारी हो जाऊँगी और जो कुछ तुम कहोगे वही करुँगी।

श्यामलाल-अच्छा तो अब मैं बयान करता हूँ, कि इस समय तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूँ। सुनो और अच्छी तरह ध्यान देकर सुनो। मैं उस आदमी को अच्छी तरह पहचानता हूँ, जो गोपालसिंह की चिट्ठी लेकर काशिराज के पास आ रहा है, मुझसे उसकी बहुत दिनों की जान-पहचान है। मैं उम्मीद करता हूँ कि सवेरा होते ही वह आदमी बरना के किनारे आ पहुँचेगा। यदि वह किसी तरह गिरफ्तार कर लिया जाय तो बेशक कई दिनों तक तुम्हें सोचने-विचारने का मौका मिलेगा क्योंकि राजा गोपालसिंह कई दिनों तक बैठे राह देखेंगे कि हमारा आदमी पत्र का जवाब लेकर अब आता होगा।

नागर-बात तो बहुत अच्छी है। क्या तुम उसे गिरफ्तार नहीं कर सकते?

श्यामलाल-(हँसकर) वाह, वाह, वाह, कहते शर्म तो नहीं आती! हाँ, इतना कर सकता हूँ कि तुम थोड़े-से सिपाही अपने साथ लेकर इस समय मेरे साथ चलो, और शहर के बाहर होकर रास्ता रोक बैठो, जब वह आदमी आवेगा तो मैं इशारे से बता दूँगा कि यही है, फिर जो तुम्हारे जी में आवे करना। मगर, मैं उसका सामना न करूँगा, क्योंकि अभी कह चुका हूँ कि मेरी उसकी जान-पहचान बहुत पुरानी है।