पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/११५

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राजा गोपाल सिंह के जाने के बाद पहली दफे जब वह औरत दिखाई दी, उस समय दोनों भाई नहर के किनारे बैठे बातचीत कर रहे थे। समय संध्या का था और बाग की हरएक चीज साफ-साफ दिखाई दे रही थी। यकायक वह औरत उसी चमेली की झाड़ी में से निकलती दिखाई दी। वह दोनों कुमारों की तरफ तो नहीं आई। मगर उन्हें दिखाकर एक कपड़े का टुकड़ा जमीन पर रखने के बाद पुनः चमेली की झाड़ी में घुसकर गाय हो गयी।

इन्द्रजीतसिंह की आज्ञा पाकर आनन्दसिंह वहाँ गये और उस टुकड़े को उठा लाए, उस पर किसी तरह के रंग से यह लिखा हुआ था--

"सत्पुरुषों के आगमन से दीन-दुखिया प्रसन्न होते हैं और सोचते हैं कि अब हमारा भी कुछ न कुछ भला होगा ! मुझ दुखिया को भी इस तिलिस्म में सत्पुरुषों की बाट जोहते और ईश्वर से प्रार्थना करते बहुत दिन बीत गये, परन्तु अब आप लोगों के आने से भलाई की आशा जान पड़ने लगी है। यद्यपि मेरा दिल गवाही देता है कि आप लोगों के हाथ से सिवाय भलाई के मेरी बुराई नहीं हो सकती, तथापि इस कारण से कि बिना समझे दोस्त-दुश्मन का निश्चय कर लेना नीति के विरुद्ध है, मैं आपकी सेवा में उपस्थित न हई। अब आशा है कि आप अनुग्रहपूर्वक अपना परिचय देकर मेरा भ्रम दूर करेंगे।

-इन्दिरा।"

इस पत्र के पढ़ने से दोनों कुमारों को बड़ा ताज्जुब हुआ और इन्द्रजीतसिंह की आज्ञानुसार आनन्दसिंह ने उसके पत्र का यह उत्तर लिखा--

"हम लोगों की तरफ से किसी तरह का खुटका न रखो। हमलोग राजा वीरेन्द्रसिंह के लड़के हैं और इस तिलिस्म को तोड़ने के लिए यहाँ आये हैं। तुम बेखटके अपना हाल हमसे कहो, हम लोग निःसन्देह तुम्हारा दुःख दूर करेंगे।"

यह चिट्ठी चमेली की झाड़ी में उसी जगह हिफाजत के साथ रख दी गई जहाँ से उस औरत की चिट्ठी मिली थी। दो दिन तक वह औरत दिखाई न दी, मगर तीसरे दिन जब दोनों कुमार बाजे वाले तहखाने में से लौटे और उस चमेली की टट्टी के पासी गये तो ढंढने पर आनन्द सिंह को अपनी लिखी चिट्ठी का जवाब मिला। यह जवाब भ एक छोटे से कपड़े के टुकड़े पर लिखा हुआ था, जिसे आनन्दसिंह ने पढ़ा। मतलब यह था--

“यह जानकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई कि आप राजा वीरेन्द्रसिंह के लड़के हैं, जिन्हें मैं बहुत अच्छी तरह जानती हूँ, इसलिए आपकी सेवा में बेखटके उपस्थित हो सकती हूँ। मगर राजा गोपालसिंह से डरती हूँ जो आपके पास आया करते हैं।

-इन्दिरा।"

पुनः कुंअर इन्द्रजीतसिंह की तरफ से यह जवाब लिखा गया--

"हम प्रतिज्ञा करते हैं कि राजा गोपालसिंह भी तुम्हें किसी तरह का कष्ट न देंगे।"