पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/११४

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आनन्दसिंह को बहुत-कुछ समझा-बुझाकर और वहाँ से देवमन्दिर में जाने का रास्ता बताकर राजा गोपालसिंह वहाँ से रवाना हो गये।



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राजा गोपालसिंह के चले जाने के बाद दोनों कुमारों ने बातचीत करते-करते ही रात बिता दी और सुबह को दोनों भाई जरूरी कामों से छुट्टी पाकर फिर उसी बाजे वाले कमरे की तरफ रवाना हुए। जिस राह से इस बाग में आये थे, वह दरवाजा अभी तक खुला हुआ था, उसी राह से होते हुए दोनों तिलिस्मी बाजे के पास पहुंचे। इस समय आनन्दसिंह अपने तिलिस्मी खंजर से रोशनी कर रहे थे।

दोनों भाइयों की राय हुई कि इस बाजे में जो भी कुछ बातें भरी हुई हैं, उन्हें एक दफे अच्छी तरह सुनकर याद कर लेना चाहिए, फिर जैसा होगा देखा जायगा, आखिर ऐसा ही किया गया। बाजे की ताली उनके हाथ लग ही चुकी थी और ताली लगाने की तरकीब भी उस तख्ती पर लिखी हुई थी जो ताली के साथ मिली थी। अब इन्द्रजीतसिंह ने बाजे में ताली लगाई और दोनों भाई उसकी आवाज गौर से सूनने लगे। जब बाजे का बोलना बन्द हुआ तो इन्द्रजीतसिंह ने आनन्दसिंह से कहा, "मैं बाजे में ताली लगाता हूँ और तिलिस्मी खंजर से रोशनी भी करता हूँ और तुम इस बाजे में से जो कुछ आवाज निकले, उसे संक्षेप में लिखते चले जाओ।" आनन्दसिंह ने इसे कबूल किया और उसी किताब में जिसमें पहले इन्द्रजीतसिंह इस बाजे की कुछ आवाज लिख चके थे लिखने लगे। पहले वह आवाज लिख गये जो अभी बाजे में से निकली थी। इसके बाद इन्द्रजीतसिंह ने इस बाजे का एक खटका दबाया और फिर ताली देकर आवाज सुनने लगे तथा आनन्दसिंह उसे लिखने लगे।

इस बाजे में जितनी आवाजें भरी हुई थीं, उनका सुनना और लिखना दो-चार घण्टे का काम न था, बल्कि कई दिन काम था, क्योंकि बाजा बहुत धीरे-धीरे चल कर आवाज देता था और जो बात कुमार की समझ में न आती थी, उसे दोहरा कर सुनना पडता था, अतः आज चार घण्टे तक दोनों कुमार उस बाजे की आवाज सुनने और लिखने में लगे रहे, इसके बाद फिर उसी बाग में चले आये जिसका जिक्र ऊपर आ चका है। बाकी का दिन और रात उसी बाग में बिताया और दूसरे दिन सवेरे जरूरी कामों से छटी पाकर फिर तहखाने में घुसे तथा बाजे वाले कमरे में आकर फिर बाजे की आवाज मनने और लिखने के काम में लगे। इसी तरह दोनों कुमारों को बाजे की आवाज सुनने और लिखने के काम में कई दिन लग गये और इस बीच दोनों कुमारों ने तीन दफे उस औरत को देखा, जिसका हाल पहले लिखा जा चुका है और जिसकी लिखी एक चिट्ठी राजा गोपालसिंह के हाथ लगी थी। उस औरत के विषय में जो बातें लिखने योग्य हई हैं, उन्हें हम यहाँ पर लिखते हैं।