पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/११९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
119
 

हो गया हैं और मैं यहाँ घूमने-फिरने लायक भी हो गई हूँ, मगर इस तिलिस्म के बाहर नहीं निकल सकती। क्या कहूँ, उस किताब का मतलब पूरा-पूरा समझ में नहीं आता, यदि मैं उसे अच्छी तरह समझ सकती तो निःसन्देह यहाँ से बाहर जा सकती और आश्चर्य नहीं कि अपनी माँ को छुड़ा लेती।

गोपालसिंह--यह किताब कौन-सी है और कहाँ है?

इन्दिरा--(कपड़े के अन्दर से एक छोटी-सी किताब निकालकर और गोपालसिंह के हाथ में देकर)लीजिए, यही है।

यह किताब लम्बाई-चौड़ाई में बहुत छोटी थी और उसके अक्षर भी बड़े ही महीन थे, मगर इसे देखते ही गोपालसिंह का चेहरा खुशी से दमक उठा और उन्होंने इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह की तरफ देखकर कहा, “यही मेरी वह किताब है जो खो गई थी। (किताब चूमकर) आह, इसके खो जाने से तो मैं अधमरा-सा हो गया था ! (इन्दिरा से) यह तेरे हाथ कैसे लग गई ?"

इन्दिरा--इसका हाल भी बड़ा विचित्र है, अपना किस्सा जब मैं कहूँगी तो उसी के बीच में वह भी आ जायेगा।

इन्द्रजीतसिंह--(गोपालसिंह से)मालूम होता है कि इन्दिरा का किस्सा बहुत बड़ा है, इसलिए आप पहले रोहतासगढ़ का हाल सुना दीजिये तो एक तरफ से दिलजमई हो जाये।

कमलिनी के मकान की तबाही, किशोरी, कामिनी और तारा की तकलीफ, नकली बलभद्रसिंह के कारण भूतनाथ की परेशानी, लक्ष्मीदेवी, दारोगा और शेरअलीखाँ का रोहतासगढ़ में गिरफ्तार होना, राजा वीरेन्द्रसिंह का वहाँ पहुँचना, भूतनाथ के मुकदमे की पेशी, कृष्णजिन्न का पहुँचकर इन्दिरा वाले कलमदान का पेश करना और असली बलभद्रसिंह का पता लगाने के लिए भूतनाथ को छुट्टी दिला देने इत्यादि जो कुछ बातें हम ऊपर लिख आए हैं, वह सब हाल राजा गोपालसिंह ने इन्दिरा के सामने ही दोनों कुमारों से बयान किया और सभी ने बड़े गौर से सुना।

इन्दिरा--बड़े आश्चर्य की बात है कि वह कलमदान जिस पर मेरा नाम लिखा हुआ था कृष्ण जिन्न के हाथ क्योंकर लगा ! हाँ, उस कलमदान का हमारे कब्जे से निकल जाना बहुत ही बुरा हुआ। यदि आज वह मेरे पास होता तो मैं बात-की-बात में भूतनाथ के मुकद्दमे का फैसला कर देती, मगर अब क्या हो सकता है!

गोपालसिंह--इस समय वह कलमदान राजा वीरेन्द्रसिंह के कब्जे में है इसलिए उसका तुम्हारे हाथ लगना कोई बड़ी बात नहीं है।

इन्दिरा--ठीक है, मगर उन चीजों का मिलना तो अब कठिन होगा जो उसके अन्दर थीं और उन्हीं चीजों का मिलना सबसे ज्यादा जरूरी था।

गोपालसिंह--ताज्जुब नहीं कि वे चीजें भी कृष्ण जिन्न के पास ही हों और वह महाराज के कहने से तुम्हें दे दें।

इन्द्रजीतसिंह--या उन चीजों से स्वयं कृष्ण जिन्न वह काम निकालें जो तुम कर सकती हो।