पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
120
 

इन्दिरा--“नहीं, उन चीजों का मतलब जितना मैं बता सकती हूँ, उतना कोई दूसरा नहीं बता सकता!

गोपालसिंह--खैर, जो कुछ होगा, देखा जायेगा।

आनन्दसिंह--(गोपालसिंह से) यह सब हाल आपको कैसे मालूम हुआ? क्या आपने कोई आदमी रोहतासगढ़ भेजा था ? या खुद पिताजी ने यह सब हाल कहला भेजा है ?

गोपालसिंह--भूतनाथ स्वयं मेरे पास मदद लेने के लिए आया था मगर मैंने मदद देने से इनकार कर दिया।

इन्द्रजीतसिंह--(ताज्जुब से) ऐसा क्यों किया?

गोपालसिंह--(ऊँची साँस लेकर) विधाता के हाथों से मैं बहुत सताया गया हूँ। सच तो यह है कि अभी तक मेरे होशहवास ठिकाने नहीं हैं, इसलिए मैं कुछ मदद करने लायक नहीं हैं। इसके अतिरिक्त मैं खुद अपनी तिलिस्मी किताब खो जाने के गम में पड़ा हुआ था, मुझे किसी की बात कब अच्छी लगती?

इन्द्रजीतसिंह--(मुस्कराकर)जी नहीं, ऐसा करने का सबब कुछ दूसरा ही है, मैं कुछ-कुछ समझ गया, खैर, देखा जायेगा, अब इन्दिरा का किस्सा सुनना चाहिए।

गोपालसिंह--(इन्दिरा से) अब तुम अपना हाल कहो, यद्यपि तुम्हारा और तुम्हारी मां का हाल मैं बहुत-कुछ जानता हूं मगर इन दोनों भाइयों को उसकी कुछ भा खबर नहीं है बल्कि तुम दोनों का नाम भी शायद इन्होंने न सुना होगा।

इन्द्रजीतसिंह--बेशक ऐसा ही है।

गोपालसिंह--इसलिए तुम्हें चाहिए कि अपना और अपनी माँ का हाल शुरू से कह सुनाओ, मैं समझता हूँ कि तुम्हें अपनी माँ का कुल हाल मालूम होगा।

इन्दिरा--जी हाँ, मैं अपनी मां का हाल खुद उसकी जुबानी और कुछ इधरउधर से भी पूरी तरह सुन चुकी हूँ।

गोपालसिंह--अच्छा, तो अब कहना आरम्भ करो।

इस.समय रात घण्टे भर से कुछ ज्यादा जा चुकी थी। इन्दिरा ने पहले अपनी मां का और फिर अपना हाल इस तरह बयान किया--


इन्दिरा--मेरी माँ का नाम सरयू और पिता का नाम इन्द्रदेव है।

इन्द्रजीतसिंह--(ताज्जुब से) कौन इन्द्रदेव ?

गोपालसिंह--वही इन्द्रदेव, जो दारोगा का गुरुभाई है, जिसने लक्ष्मीदेवी की जान बचाई थी, और जिसका जिक्र मैं अभी कर चुका हूं।

इन्द्रजीतसिंह--अच्छा तब ?

इन्दिरा--मेरे नाना बहुत अमीर आदमी थे। लाखों रुपयों की मौरूसी जायदाद उनके हाथ लगी थी और वह खुद भी बहुत पैदा करते थे, मगर सिवाय मेरी माँ के जनको और कोई औलाद न थी, इसलिए वह मेरी माँ को बहुत प्यार करते थे और धनदौलत भी बहुत ज्यादा दिया करते थे। इसी कारण मेरी माँ का रहना भी बनिस्बित ससुराल के नैहर में ज्यादा होता था। जिस जमाने का मैं जिक्र करती हूँ उस जमाने में