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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१२२

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नहीं मानता हूँ और न तुझसे बढ़कर किसी पर मेरा स्नेह है, अतएव इसके बदले में केवल इतना ही चाहता हूँ कि इस अन्तिम समय में जो कुछ तुझे कहता हूँ उसे तू अवश्य पूरा करे और मेरी याद अपने दिल में बनाये रहे

इतना कहते-कहते मेरे नाना की बुरी हालत हो गई। आँसुओं ने उनके रोआबदार चेहरे को तर कर दिया और गला ऐसा भर गया कि कुछ कहना कठिन हो गया। मेरी मां भी अपने पिता की विचित्र बातें सुनकर अधमरी-सी हो गई। पितृस्नेह ने उसका कलेजा हिला दिया, न रुकने वाले आँसुओं को पोंछकर और मुश्किल से अपने दिल को सम्हालकर बोली, "पिताजी, कहो, शीघ्र कहो कि आप मुझसे क्या चाहते हैं ? मैं आपके चरणों पर जान देने के लिए तैयार हूँ।"

इसके जवाब में दामोदरसिंह ने यह कहकर कि "मैं भी तुझसे यही आशा रखता हूँ", अपने कपड़ों के अन्दर से एक कलमदान निकाला और मेरी माँ को देकर कहा, "इसे अपने पास हिफाजत से रखना और जब तक मैं इस दुनिया में कायम रहूँ, इसे मत खोलना। देख इस कलमदान के ऊपर तीन तस्वीरें बनी हुई हैं। बिचली तस्वीर के नीचे इन्दिरा का नाम लिखा हआ है। जब तेरा पति इस कलमदान के अन्दर का हाल पूछे तो तु कह देना कि मेरे पिता ने यह कलमदान इन्दिरा को दिया है और इस पर उसका नाम भी लिख दिया है तथा ताकीद कर दी है कि जब तक इन्दिरा की शादी न हो जाये यह कलमदान खोला न जाये, अस्तु जिस तरह हो यह कलमदान खुलने न पावे। यह तकलीफ तुझे ज्यादा दिन तक भोगनी न पड़ेगी क्योंकि मेरी जिन्दगी का अब कोई ठिकाना न रहा। मैं इस समय खूखार दुश्मनों से घिरा हुआ हूँ, नहीं कह सकता कि आज मरूँ या कल, मगर बेटी, तू मेरे जब मरने का अच्छी तरह से निश्चय कर ले तभी इस कलमदान को खोलना। इसकी ताली मैं तुझे नहीं देता, जब इसके खुलने का समय आवे तब जिस तरह हो सके खोल डालना।" इतना कहकर मेरे नाना वहाँ से चले गए और रोती हई मेरी माँ को उसी तरह छोड़ गए।

इन्द्रजीतसिंह--मैं समझता हूँ यह वही कलमदान था जो कृष्ण जिन्न ने महाराज के सामने पेश किया था और जिसका हाल अभी तुम्हारे सामने भाई साहब ने बयान किया है!

इन्दिरा--जी हाँ। इन्द्रजीतसिंह-निःसन्देह यह अनूठा किस्सा है, अच्छा, तब क्या हआ?

इन्दिरा--घण्टे भर तक मेरी माँ तरह-तरह की बातें सोचती और रोती रही. इसके बाद दामोदरसिंह पुनः उस कमरे में आये और मेरी माँ को रोती हुई देखकर बोले "सरयू, तू अभी तक बैठी रो रही है। अरी बेटी, तुझे तो अब अपने प्यारे बाप के लिए जन्म भर रोना है, इस समय तू अपने दिल को सम्हाल और जाने की शीघ्र तैयारी कर अगर तू विलम्ब करेगी तो मुझे बड़ा कष्ट होगा और पुनः तुझसे पूछता हूँ कि उस कलमदान के विषय में जो कुछ मैंने कहा तू वैसा ही करेगी न ?" इसके जवाब में मेरी माँ ने सिसककर कहा, "जो कुछ आपने आज्ञा की है मैं उसका पालन करूँगी, परन्त मेरे पिता, यह बताओ कि तुम ऐसा क्यों कर रहे हो ?'