पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१२९

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चन्द्रकान्ता सन्तति

पन्द्रहवाँ भाग

1

इन्दिरा बोली--कुंअर साहब ने एक लम्बी साँस लेकर फिर अपना हाल कहना शुरू किया और कहा--

कुअँर--जब मह पर से कपड़ा हटा दिया क्या गया, तब मैंने अपने को एक सजे हए कमरे में देखा। वे ही आदमी जो मुझे यहाँ तक लाये थे अब भी मुझको चारों तरफ . से घेरे हुए थे। छत के साथ बहुत-सी कन्दीलें लटक रही थीं और उनमें मोमबत्तियाँ जल रही थीं, दीवारगीरों में रोशनी हो रही थी, जमीन पर फर्श बिछा हआ था और उस पर पचीस-तीस आदमी अमीराना ढंग की पोशाक पहने और सामने नंगी तलवारें रक्खे बैठे हुए थे मगर सभी का चेहरा नकाब से ढंका हुआ था। तमाम रास्ते में और उस समय मेरे दिल की क्या हालत थी सो मैं ही जानता हूँ। एक आदमी ने जो सबसे ऊँची गद्दी पर बैठा हुआ था और शायद उन सभी का सभापति था मेरी तरफ मुँह करके कहा, "कुँअर गोपालसिंह, तुम समझते होंगे कि मैं जमानिया के राजा का लड़का हूँ, जो चाहूँ सो कर सकता हूँ, मगर अब तुम्हें मालूम हुआ होगा कि हमारी सभा इतनी जबर्दस्त है कि तुम्हारे ऐसे के साथ भी जो चाहे सो कर सकती है। इस समय तुम हम लोगों के कब्जे में हो, मगर नहीं, हमारी सभा ईमानदार है। हम लोग ईमानदारी के साथ दुनिया का इन्तजाम करते हैं। तुम्हारा बाप बड़ा ही बेवकूफ है और राजा होने . के लायक नहीं है। जिस दिन से वह अपने को महात्मा और साधू बनाये हुए है, दयावान कहलाने के लिए मरा जाता है, दुष्टों को उतना दण्ड नहीं देता जितना देना चाहिए, इसी से तुम्हारे शहर में अब खून-खराबा ज्यादा होने लग गया है, मगर खनी के गिरफ्तार हो जाने पर भी वह किसी खूनी को दया के वश में पड़कर प्राण-दण्ड नहीं देता। इसी से अब हम लोगों को तुम्हारे यहाँ के बदमाशों का इन्साफ अपने हाथ में लेना पड़ा। तुम्हें खूब मालूम है कि जिस खूनी को तुम्हारे बाप ने केवल देश-निकाले का दण्ड देकर छोड़ दिया था उसकी लाश तुम्हारे ही शहर में किसी चौमुहाने पर पाई गई थी। आज तुम्हें यह भी मालूम हो गया कि वह कार्रवाई हमी लोगों की थी। तुम्हारे शहर का