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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१२८

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कभी धीरे-धीरे चलते दो पहर से ज्यादा बीत गए, पैरों में दर्द होने लगा और थकावट ऐसी जान पड़ने लगी कि मानो तमाम बदन चूर-चूर हो गया है। इसके बाद वे घोड़े रोके गए और मैं नीचे उतारकर एक पेड़ के साथ कस के बाँध दिया गया और उस समय मेरे मुँह का कपड़ा खोल दिया गया। मैंने चारों तरफ निगाह दौड़ाई तो अपने को एक घने जंगल में पाया। दस आदमी मोटे मुस्टंडे और उनकी सवारी के दस घोड़े सामने खड़े थे। पास ही में पानी का एक चश्मा बह रहा था। कई आदमी जीन खोलकर घोड़ों को ठण्डा करने और चराने की फिक्र में लगे और बाकी के शैतान हाथ में नंगी तलवार लेकर मेरे चारों तरफ खड़े हो गए। मैं चुपचाप सभी की तरफ देखता था और मुंह से कुछ भी न बोलता था और न वे लोग ही मुझसे कुछ बातें करते थे। (लम्बी साँस लेकर) यदि गर्मी का दिन होता तो शायद मेरी जान निकल जाती क्योंकि उन कम्बख्तों ने मुझे पानी तक के लिए नहीं पूछा और स्वयं खा-पीकर ठीक हो गए। अस्तु पहर भर के बाद फिर मेरी वही दुर्दशा की गई अर्थात् देखने और बोलने से लाचार करके घोड़े पर उसी तरह बैठाया गया और फिर सफर शुरू हुआ। पुनः दोपहर से ज्यादा देर तक सफर करना पड़ा और इसके बाद मैं घोड़े से नीचे उतारकर पैदल चलाया गया। मेरे पैर दर्द और तकलीफ से बेकार हो रहे थे, मगर लाचारी ने फिर भी चौथाई कोस तक चलाया और इसके बाद चौखट लांघने की नौबत आई, तब मैंने समझा कि अब किसी मकान में जा रह चार दफे चौखट लाँघनी पड़ी जिसके बाद मैं एक खम्भे के साथ बांध दिया गया तब मेरे मुंह पर से कपड़ा हटाया गया।

। चौदहवाँ भाग समाप्त !


तिलिस्मी लेख

बाजे से निकली आवाज का मतलब यह है--

"सारा तिलिस्म तोड़ने का खयाल न करो और इस तिलिस्म की ताली किसी चलती-फिरती से प्राप्त करो। इस बाजे में वे सब बातें भरी हैं जिनकी तुम्हें जरूरत है. ताली लगाया करो, सुना करो। अगर एक ही दफे सुनने से समझ में न आवे तो दोहरा करके भी सुन सकते हो। इसका तरकीब और ताली इसी कमरे में है। ढूंढ़ो।

(देखिये-पृष्ठ 86)

महाराज सूर्यकान्त की तस्वीर के नीचे लिखे हुए बारीक अक्षरों वाले मजमून

("स्वर दै गिन के वर्ग पै") का अर्थ यह है--

खूब समझ के तब आगे पैर रक्खो।

बाजे वाले चौतरे में खोजो, तिलिस्मी खंजर अपनी देह से अलग मत करो, नहीं तो जान पर आ बनेगी।

(देखिये-पृष्ठ 92)

च० स०-4-8