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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१३

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भूतनाथ--जी नहीं।

वीरेन्द्रसिंह--तुम अभी कह चुके हो कि यह पत्र मेरे हाथ का लिखा है और फिर कहते हो कि नहीं!

भूतनाथ--जी मैं यह नहीं कहता कि यह कागज मेरे हाथ का लिखा हुआ नहीं है बल्कि मैं यह कहता हूँ कि यह पत्र हेलासिंह के पास मैंने नहीं भेजा था।

वीरेन्द्रसिंह-तब किसने भेजा था?

भूतनाथ--(बलभद्रसिंह की तरफ इशारा करके) इसने भेजा था और इसी ने अपना नाग भूतनाथ रक्खा था क्योंकि यह वास्तव में लक्ष्मीदेवी का बाप बलभद्रसिंह नहीं है।

वीरेन्द्रसिंह--अगर यह चिट्ठी (बलभद्रसिंह की तरफ इशारा करके) इन्होंने हेलासिंह पास भेजी थी तो फिर तुमने इसे अपने हाथ से क्यों लिखा? क्या तुम इनके नौकर या मुहर्रिर थे ?

भूतनाथ--जी नहीं, इसका कुछ दूसरा ही सबब है, मगर इसके पहले कि मैं आपकी बातों का पूरा-पूरा जवाब दूं, इस नकली बलभद्रसिंह से दो-चार बातें पूछने की आज्ञा चाहता हूँ।

वीरेन्द्रसिंह--क्या हर्ज है, जो कुछ पूछना चाहते हो, पूछो।

भूतनाथ—(बलभद्रसिंह की तरफ देख के) इस कागज के मुझे को तुम शुरू से आखिर तक पढ़ चुके हो या नहीं?

बलभद्रसिंह--हाँ, पढ़ चुका हूँ।

भूतनाथ--जो चिट्ठी अभी पढ़ी गई है इसके आगे वाली चिट्ठियाँ जो अभी पढ़ी नहीं गईं, तुम्हारे इस मुकदमे से कुछ सम्बन्ध रखती हैं?

बलभद्र--नहीं।

भूतनाथ--सो क्यों?

बलभद्र--आगे की चिट्ठियों का मतलब हमारी समझ में नहीं आता।

भूतनाथ--तो अब आगे वाली चिट्ठियों को पढ़ने की कोई आवश्यकता न रही।

बलभद्र--तेरा कसूर साबित करने के लिए क्या इतनी चिट्ठियाँ कम हैं जो पढ़ी जा चुकी हैं?

भूतनाथ--बहुत हैं बहुत हैं, अच्छा तो अब मैं यह पूछता हूँ कि लक्ष्मीदेवी के शादी के दिन तुम कैद कर लिए गए थे?

बलभद्रसिंह--हाँ।

भूतनाथ--उस समय बालासिंह कहाँ था और अब बालासिंह कहाँ है?

भूतनाथ के इस सवाल ने बलभद्रसिंह की अवस्था फिर बदल दी। वह और भी घबराया-सा होकर वोला, "इन सब बातों के पूछने से क्या फायदा निकलेगा?" इतना कहकर उसने दारोगा और मायारानी की तरफ देखा। मालूम होता था कि बालासिंह के नाम ने मायारानी और दारोगा पर भी अपना असर किया जो मायारानी के बगल ही में एक खम्भे के साथ बँधा हुआ था। वीरेन्द्रसिंह और उनके बुद्धिमान ऐयारों ने भी