बलभद्र और दारोगा तथा मायारानी के चेहरे और उन तीनों की इस देखा-देखी पर गौर किया और वीरेन्द्रसिंह ने मुस्कुराकर जिन्न की तरफ देखा।
जिन्न--मैं समझता हूँ कि इस बलभद्रसिंह के साथ अब आपको बेमुरोवती करनी होगी।
वीरेन्द्रसिंह--बेशक ! मगर क्या आप कह सकते हैं कि यह मुकदमा आज फैसला हो जायगा?
जिन्न--नहीं, यह मुकदमा इस लायक नहीं है कि फैसला हो जाय। यदि आप इस मुकदमे की कलई अच्छी तरह खोलना चाहते हैं तो इस समय इसे रोक दीजिए और भूतनाथ को छोड़कर आज्ञा दीजिए कि महीने-भर के अन्दर जहाँ से हो सके वहाँ से असली बलभद्रसिंह को खोज लावे नहीं तो उसके लिए बेहतर न होगा।
वीरेन्द्रसिंह--भूतनाथ को किसकी जमानत पर छोड़ दिया जाय?
जिन्न--मेरी जमानत पर।
वीरेन्द्रसिंह--जब आप ऐसा कहते हैं तो हमें कोई उज्र नहीं है यदि लक्ष्मीदेवी और लाड़िली तथा कमलिनी भी इसे स्वीकार करें।
जिन्न--उन सब को भी कोई उज्र नहीं होना चाहिए।
इतने में पर्दे के अन्दर से कमलिनी ने कहा, "हम लोगों को कोई उज्र न होगा, हमारे महाराज को अधिकार है जो चाहें करें !"
वीरेन्द्रसिंह--(जिन्न की तरफ देख के) तो फिर कोई चिन्ता नहीं, हम आपकी बात मान सकते हैं। (भूतनाथ से) अच्छा तुम यह तो बताओ कि जब वह चिट्ठी तुम्हारे ही हाथ की लिखी हुई है तो तुम इसे हेलासिंह के पास भेजने से क्यों इनकार करते हो?
भूतनाथ--इसका हाल भी उसी समय मालूम हो जायगा जब मैं असली बलभद्रसिंह को छुड़ाकर ले आऊँगा।
जिन्न--आप इस समय इस मुकदमे को रोक ही दीजिए, जल्दी न कीजिए, क्योंकि इसमें अभी तरह-तरह के गुल खिलने वाले हैं।
बलभद्र--नहीं-नहीं, भूतनाथ को छोड़ना उचित नहीं होगा, यह बड़ा भारी बेईमान जालियांँ धूर्त और बदमाश है। यदि इस समय यह छूटकर चल देगा, तो फिर कदापि न आवेगा।
तेजसिंह--(घुड़ककर बलभद्र से) बस, चुप रहो, तुमसे इस बारे में राय नहीं मांगी जाती।
बलभद्रसिंह--(खड़े होकर) तो फिर मैं जाता हूँ, जिस जगह ऐसा अन्याय हो वहाँ ठहरना भले आदमियों का काम नहीं।
बलभद्रसिंह उठकर खड़ा हुआ ही था कि भैरोंसिंह ने उसकी कलाई पकड़ ली और कहा, "ठहरिये, आप भले आदमी हैं, आपको क्रोध न करना चाहिए, अगर ऐसा कीजिएगा तो भलमनसी में बट्टा लग जायगा। यदि आपको हम लोगों की सोहबत अच्छी नहीं मालूम पड़ती तो आप मायारानी और दारोगा की सोहबत में रक्खे जायेंगे,