पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१४१

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इन्दिरा--अभी थोड़े ही दिन हुए जब मैं कैदखाने में अपनी माँ के पास पहुंची तो उसने उस कलमदान का भेद बताया था।

आनन्दसिंह--मगर फिर उस कलमदान का पता न लगा?

इन्दिरा--जी नहीं, उसके बाद आज तक उस कलमदान का हाल मुझे मालूम न हुआ। मैं नहीं कह सकती कि उसे कौन ले गया या वह क्या हुआ। हाँ, इस समय राजा साहब की जुबानी सुनने में आया है कि वही कलमदान कृष्ण जिन्न ने राजा वीरेन्द्रसिंह के दरबार में पेश किया था।

गोपालसिंह--उस कलमदान का हाल मैं जानता हूँ। सच तो यह है कि सारा बखेड़ा उस कलमदान ही के सबब से हुआ। यदि वह कलमदान मुझे या इन्द्रदेव को उस समय मिल जाता तो लक्ष्मीदेवी की जगह मुन्दर मेरे घर न आती और मुन्दर तथा दारोगा की बदौलत मेरी गिनती मुर्दो में न होती और न भूतनाथ ही पर आज इतने जुर्म लगाये जाते। वास्तव में उस कलमदान को गदाधरसिंह ही ने उन दुष्टों की सभा में से लूट लिया था जो आज भूतनाथ के नाम से मशहूर है। इसमें कोई शक नहीं कि उसने इन्दिरा की जान बचाई। मगर कलमदान को छिपा दिया गया और उसका हाल किसी से न कहा। बड़े लोगों ने सच कहा है कि "विशेष लोभ आदमी को चौपट कर देता है।" वही हाल भूतनाथ का हुआ। पहले भूतनाथ बहुत नेक और ईमानदार था और आज कल भी वह अच्छी राह पर चल रहा है। मगर बीच में थोड़े दिनों तक उसके ईमान में फर्क पड़ गया था, जिसके लिए आज वह अफसोस कर रहा है। आप इन्दिरा का और हाल सुन लीजिए, फिर कलमदान का भेद मैं आपसे बयान करूँगा।

इन्द्रजीतसिंह--जो आज्ञा। (इन्दिरा से) अच्छा, तुम अपना हाल कहो कि बलभद्रसिंह के यहाँ जाने के बाद फिर तुम पर क्या बीती?

इन्दिरा--मैं बहुत दिनों तक उनके यहाँ आराम से अपने को छिपाए हुए बैठी रही और मेरे पिता कभी-कभी वहाँ जाकर मुझसे मिल आया करते थे। यह मैं नहीं कह सकती कि पिता ने मुझे बलभद्रसिंह के यहाँ क्यों छोड़ रखा था। जब बहुत दिनों के बाद लक्ष्मीदेवी की शादी का दिन आया और बलभद्रसिंहजी लक्ष्मीदेवी को लेकर यहाँ आये तो मैं भी उनके साथ आई। (गोपालसिंह की तरफ इशारा करके) आपने जब मेरे आने की खबर सुनी तो मुझे अपने यहाँ बुलवा भेजा। अस्तु मैं लक्ष्मीदेवी को जो दूसरी जगह टिकी हुई थी, छोड़ कर राजमहल में चली आई। राजमहल में चले आना ही मेरे लिए काल हो गया क्योंकि दारोगा ने मुझे देख लिया और अपने पिता तथा राजा साहब की तरह मैं भी दारोगा की तरफ से बेफिक्र थी। इस शादी में मेरे पिता मौजूद न थे। मुझे इस बात का ताज्जुब हुआ। मगर जब राजा साहब से मैंने पूछा तो मालूम हुआ कि वे बीमार हैं, इसीलिए नहीं आये। जिस दिन मैं राजमहल में आई उसी दिन रात को लक्ष्मीदेवी की शादी थी। शादी हो जाने पर सवेरे जब मैंने लक्ष्मीदेवी की सूरत देखी तो मेरा कलेजा धक से हो गया, क्योंकि लक्ष्मीदेवी के बदले मैंने किसी दूसरी औरत को घर में पाया। हाय उस समय मेरे दिल की जो हालत थी मैं बयान नहीं कर सकती। मैं घबराई हुई बाहर की तरफ दौड़ी। जिसमें राजा साहब को इस बात की खबर दूं