सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
140
 

वहाँ क्या हाल है। इन्द्रदेव से मुलाकात होने पर मैं इन्दिरा को यहाँ पहुँचा देना बयान कर दूंगा।" बलभद्रसिंह ने बहुत ही प्रसन्न होकर गदाधरसिंह को धन्यवाद दिया और वे थोड़ी देर तक बातचीत करने के बाद सवेरा होने के पहले ही वहाँ से रवाना हो गये। गदाधरसिंह के चले जाने के बाद बलभद्रसिंहजी मुझसे बातचीत करते रहे और सवेरा हो जाने पर मुझे लेकर घर के अन्दर गए। उनकी स्त्री ने मुझे बड़े प्यार से गोद में ले लिया और लक्ष्मीदेवी ने तो मेरी ऐसी कदर की जैसे कोई अपनी जान की कदर करता है। मुझे वहाँ बहुत दिनों तक रहना पड़ा था। इसलिए मुझसे और लक्ष्मीदेवी से हद से ज्यादा मुहब्बत हो गई थी। मैं बड़े आराम से उनके यहां रहने लगी। मालूम होता है कि गदाधरसिंह ने जमानिया में जाकर मेरे पिता से मेरा सब हाल कहा क्योंकि थोड़े ही दिन बाद मेरे पिता मुझ को देखने के लिए बलभद्र सिंह के यहाँ आये और उस समय उनकी जुबानी मालूम हुआ कि मेरी मां पुनः मुसीबत में गिरफ्तार हो गई अर्थात् महल में पहुँचने के साथ ही गायब हो गई। मैं अपनी माँ के लिए बहुत रोई। मगर मेरे पिता ने मुझे दिलासा दिया। केवल एक दिन रहकर मेरे पिता जमानिया की तरफ चले गए और मुझे वहाँ ही छोड़ गए।

मैं कह चुकी हूँ कि मुझसे और लक्ष्मीदेवी से बड़ी मुहब्बत हो गई थी। इसीलिए मैंने अपने नाना साहब और कलमदान का कुल हाल उससे कह दिया था और यह भी कह दिया था कि उस कलमदान पर तीन तस्वीरें बनी हुई हैं, दो को तो मैं नहीं जानती, मगर बिचली तस्वीर मेरी है और उसके नीचे मेरा नाम लिखा हुआ है। जमानिया जाकर मेरे पिता ने क्या-क्या काम किया, सो मैं नहीं कह सकती। परन्तु यह अवश्य सुनने में आया था कि उन्होंने बड़ी चालाकी और ऐयारी से उन कमेटी वालों का पता लगाया और राजा साहब ने उन सभी को प्राण-दण्ड दिया।

गोपालसिंह--निःसन्देह उन दुष्टों का पता लगाना इन्द्रदेव ही का काम था। जैसी-जैसी ऐयारियाँ इन्द्रदेव ने की वैसी कम ऐयारों को सूझेंगी। अफसोस, उस समय वह कलमदान हाथ न आया, नहीं तो सहज ही में सव दुष्टों का पता लग जाता और यही सबब था कि दुष्टों की सूची में दारोगा, हेलासिंह या जयपालसिंह का नाम न चढ़ा और वास्तव में ये ही तीनों उस कमेटी के मुखिया थे जो मेरे हाथ से बच गये और फिर उन्हीं की बदौलत मैं गारत हुआ।

इन्द्रजीतसिंह--ताज्जुब नहीं कि दारोगा के बारे में इन्द्रदेव ने सूस्ती कर दी हो और गुरुभाई का मुलाहिजा कर गये हों।

गोपालसिंह--यह भी हो सकता है।

आनन्दसिंह--(इन्दिरा से) क्या उस कलमदान के अन्दर का हाल तुम्हें भी मालूम न था?

इन्दिरा--जी नहीं, अगर मुझे मालूम होता तो ये तीनों दुष्ट क्यों बचने पाते? हाँ, मेरी माँ उस कलमदान को खोल चुकी थी और उसे उसके अन्दर का हाल मालूम था, मगर वह तो गिरफ्तार कर ली गई थी फिर उन भेदों को कौन खोलता?

आनन्दसिंह--आखिर उस कलमदान के अन्दर का हाल तुम्हें कब मालूम हआ?