पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१४४

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अभी तक हेलासिंह से पत्र-व्यवहार करता है और पत्र ले जाने और ले आने का काम केवल बेनीसिंह करता है जो रघुबरसिंह का मातबर सिपाही है। जब एक दफे बेनीसिंह देलासिंह के यहाँ गया तो गदाधरसिंह ने उसका पीछा किया और मौका पाकर उसे गिरफ्तार करना चाहा, लेकिन वेनीसिंह इस बात को समझ गया और दोनों में लडाई हो गई। गदाधरसिंह के हाथ से बेनीसिंह मारा गया और गदाधरसिंह, बेनीसिंह बनकर रघवरसिंह के यहां रहने तथा हेलासिंह के यहाँ पत्र लेकर जाने और जवाब ले आने लगा। इस हीले से तथा कागजों की चोरी करने से थोड़े ही दिनों में रघुबर सिंह का सब भेद उसे मालूम हो गया और तब उसने अपने को रघुबरसिंह पर प्रकट किया, लाचार हो रघुबरसिंह ने भी उसे बहुत-सा रुपया देकर अपनी जान बचाई, यह किस्सा बहुत बड़ा है और इसका पूरा-पूरा हाल मुझे भी मालूम नहीं है, जब भूतनाथ अपना किस्सा आप बयान करेगा, तब पूरा हाल मालूम होगा, फिर भी मतलब यह कि उस कलमदान की बदौलत भूतनाथ ने रुपया भी बहुत पैदा किया और साथ ही अपने दुश्मन भी बहुत बनाये जिसका नतीजा वह अब भोग रहा है और कई नेक काम करने पर भी उसकी जान को अभी तक छुट्टी नहीं मिलती। केवल इतना ही नहीं, जब भूतनाथ असली बलभद्रसिंह का पता लगावेगा, तब और भी कई विवित्र बातों का पता लगेगा, मैंने तो सिर्फ इन्दिरा के किस्से का सिलसिला बैठाने के लिए बीच ही में इतना बयान कर दिया है।

इन्द्रजीतसिंह--यह सब हाल आपको कब और कैसे मालूम हुआ ? गोपाल सिंह-जब आपने मुझे कैद से छुड़ाया उसके बाद हाल ही में ये सब बातें मुझे मालूम हुई हैं, और जिस तरह मालूम हुईं, सो अभी कहने का मौका नहीं। अब आप इन्दिरा का किस्सा सुनिये, फिर जो कुछ शंका रहेगी, उसके मिटाने का उद्योग किया जायगा।

इन्दिरा--जो आज्ञा ! दारोगा ने फिर मुझे बेहोश कर दिया और जब मैं होश में आई तो अपने को एक लम्बे-चौड़े कमरे में पाया ! मेरे हाथ-पैर खुले हुए थे और वह कमरा भी बहत साफ और हवादार था। उसके दो तरफ की लकड़ी की दीवार थी और एक तरफ की ईंट और चूने से बनी हुई थी। एक तरफ की दीवार में दो दरवाजे थे और दूसरी तरफ की पक्की दीवार में छोटी-छोटी तीन खिड़कियाँ बनी हुई थीं जिनमें से हवा बखबी आ रही थी। मगर वे खिड़कियां इतनी ऊँची थीं कि उन तक मेरा हाथ नहीं जा सकता था। बाकी दोनों तरफ की दीवारों में, जो लकड़ी की थीं, तरह-तरह की सुन्दर और बड़ी तस्वीरें बनी हुई थीं और छत में दो रोशनदान थे जिनमें से सूर्य की चमक आ रही थी तथा उस कमरे में अच्छी तरह उजाला हो रहा था। एक तरफ की पक्की दीवार में दो दरवाजे थे, उनमें से एक दरवाजा खुला हुआ और दूसरा बन्द था। मैं जब होश में आई तो अपना सिर किसी की गोद में पाया। मैं घबराकर उठ बैठी और उस औरत की तरफ देखने लगी जिसकी गोद में मेरा सिर था। वह मेरे ननिहाल की वही दाई थी जिसने मुझे गोद में खिलाया था और जो मुझे बहुत प्यार करती थी। यद्यपि मैं कैद में थी और माँ-बाप की जुदाई में अधमरी हो रही थी, फिर भी अपनी दाई को देखते ही

च० स०-4-9