पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
145
 

थोड़ी देर के लिए सब दुःख भूल गई और ताज्जुब के साथ मैंने उस दाई से पूछा, "अन्ना, तू यहाँ कैसे आई ?' (मैं अपनी दाई को 'अन्ना' कह के पुकारा करती थी।)

अन्ना--बेटी, मैं यह तो नहीं जानती कि तू यहाँ कब से है, मगर मुझे आये अभी दो घण्टे से ज्यादा नहीं हुए हैं। मुझे कम्बख्त दारोगा ने धोखा देकर गिरफ्तार कर लिया और बेहोश करके यहाँ पहुँचा दिया, मगर इस जगह तुझे देखकर मैं अपना दुःख बिल्कुल भूल गई। तू अपना हाल तो बता कि यहाँ कैसे आई ?

मैं--मुझे भी कम्बख्त दारोगा ने ही बेहोश करके यहाँ तक पहुँचाया है। राजा गोपालसिंहजी की शादी हो गयी। मगर जब मैंने अपनी प्यारी लक्ष्मीदेवी के बदले में किसी दूसरी औरत को वहाँ देखा तो घबराकर इसका सबब पूछने के लिए राजा साहब के पास गई, मगर उनके कमरे में केवल दारोगा बैठा हुआ था, मैं उसी से पूछ बैठी। बस यह सुनते ही वह मेरा दुश्मन हो गया, धोखा देकर दूसरे मकान की तरफ ले चला और रास्ते में एक कपड़ा मेरे मुंह पर डालकर बेहोश कर दिया। उसके बाद की मुझे कुछ भी खबर नहीं है। दारोगा ने तुझे क्या कहकर कैद किया?

अन्ना--मैं एक काम के लिए बाजार में गई थी। रास्ते में दारोगा का नौकर मिला। उसने कहा कि इन्दिरा दारोगा साहब के घर में आई है, उसने मुझे तुझको बुलाने के लिए भेजा है और बहुत ताकीद की है कि खड़े-खड़े सुनती जाओ। तो उसकी बात सच समझ उसी वक्त दारोगा के घर चली गई, मगर उस हरामजादे ने मेरे साथ भी बेईमानी की, बेहोशी की दवा मुझे जबर्दस्ती सुंघाई। मैं नहीं कह सकती कि एक घण्टे तक बेहोश रही या एक दिन तक, पर जब मैं यहाँ पहुँची तब मैं होश में आई, उस समय केवल दारोगा नंगी तलवार लिए सामने खड़ा था। उसने मुझसे कहा, "देख, तू वास्तव में इन्दिरा के पास पहुंचाई गई है। लड़की कैदखाने में रहने योग्य नहीं है, इसलिए तू भी इसके साथ कैद की जाती है और तुझे हुक्म दिया जाता है कि हर तरह इसकी खातिर और तसल्ली करना और जिस तरह हो, इसे खिलाना-पिलाना। देख, उस कोने में खाने-पीने का सब सामान रखा है।"

मैं--मेरी नानी का क्या हाल है ? असोस, मैं तो उससे मिल भी न सकी, अब इस आफत में फंस गई !

अन्ना--तेरी नानी का मैं क्या हाल बताऊँ, वह तो नाममात्र को जीती है, अब उसका बचना कठिन है।

अन्ना की जुबानी अपनी नानी का हाल सुन के मैं बहुत रोई-कलपी। अन्ना ने मुझे बहुत समझाया और धीरज देकर कहा कि ईश्वर का ध्यान कर, उसकी कृपा से हम लोग जरूर इस कैद से छूट जायेंगे। मालूम होता है कि दारोगा तेरे जरिये से कोई काम निकालना चाहता है, अगर ऐसा न हो तो वह तुझे मार डालता और तेरी हिफाजत के लिए मुझे यहाँ न लाता, अव जहाँ तक हो उसका काम पूरा न होने देना चाहिए। खैर, जब वह यहाँ आकर तुझसे कुछ कहे-सुने तो तू मुझ पर टाल दिया करना। फिर जो-कुछ होगा मैं समझ लूंगी। अब तू कुछ खा-पी ले। फिर जो कुछ होगा देखा जायगा। अन्ना के समझाने से मैं खाना खाने के लिए तैयार हो गई। खाने-पीने का सामान सब उस घर