पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१४९

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इतना कहकर इन्द्रदेव बड़ी फुर्ती से कैदखाने के अन्दर चला गया और उस कोठरी का दरवाजा जिसमें किशोरी, कामिनी, लक्ष्मीदेवी, लाड़िली और कमला को रख दिया था पुनः उसी ढंग से खोला जैसे पहले खोला था। दरवाजा खुलने के साथ ही तेजसिंह को साथ लिए हुए कमलिनी उस कोठरी के अन्दर घुस गई और वहाँ कामिनी, लक्ष्मीदेवी, लडिली और कमला को मौजूद पाया मगर किशोरी का पता न था। कमलिनी ने उन औरतों को तुरत कोठरी के बाहर निकालकर राजा वीरेन्द्रसिंह के पास चले जाने के लिए कहा और आप दूसरे काम का उद्योग करने लगी। बाकी औरतों के बाहर होते ही इन्द्रदेव ने जंजीर छोड़ दी और कोठरी का दरवाजा बन्द हो गया। कमलिनी ने अपने तिलिस्मी खंजर से रोशनी करके चारों तरफ गौर से देखा। बगल वाली दीवार में एक छोटा-सा दरवाजा खुला हुआ दिखाई दिया जिसमें ऊपर के हिस्से में जाने के लिए सीढ़ियां थीं। दोनों उस दरवाजे के अन्दर चले गये और सीढ़ियां चढ़ कर छत के ऊपर जा पहुँचे, अब तेजसिंह को मालूम हुआ कि इसी जगह से उस गुप्त मनुष्य के बोलने की आवाज आ रही थी।

इस ऊपर वाले हिस्से की छत बहुत लम्बी-चौड़ी थी और वहाँ कई बड़े-बड़े दालान थे और उन दालानों में से कई तरफ निकल जाने के रास्ते भी थे। तेजसिंह और। कमलिनी ने देखा कि वहाँ पर बहुत-सी लाशें पड़ी हुई हैं जिनमें से शायद दो ही चार में दम हो, और जमीन भी वहाँ की खून से तरबतर हो रही थी। अपने पैर को खून और . लाशों से बचा कर किसी तरफ निकल जाना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव था, अतः कमलिनी ने इस बात का कुछ भी खयाल न किया और लाशों पर पैर रखती हुई बराबर चलती गई। और एक दालान में पहुँची जिसमें से दूसरी तरफ निकल जाने के लिए एक खुला हुआ दरवाजा था। दरवाजे के उस पार पैर रखते ही दोनों की निगाह कृष्ण जिन्न पर पड़ी जिसे दुश्मन चारों तरफ से घेरे हुए थे और वह तिलिस्मी तलवार से सभी को काट कर गिरा रहा था। यद्यपि वह तिलिस्मी फौलादी जाल की पोशाक पहने हुए था और इस सवब से उसके ऊपर दुश्मनों की तलवारें कुछ काम नहीं करती थीं तथापि ध्यान देने से मालूम होता था कि तलवार चलाते-चलाते उसका हाथ थक गया है और थोड़ी देर में हर्बा चलाने या लड़ने लायक न रहेगा। इतना होने पर भी दुश्मनों को उस पर फतह पाने की आशा न थी और मुकाबला करने से डरते थे। जिस समय कमलिनी और तेजसिंह तिलिस्मी खंजर चमकाते हुए उसके पास जा पहँचे, उस समय दुश्मनों का जी बिल्कुल ही टूट गया और वे तलवारें जमीन पर फेंक-फेंककर 'शरण' 'शरणागत' इत्यादि पुकारने लगे।

अगर दुश्मनों को यहां से निकल जाने का रास्ता मालूम होता और वे लोग भाग कर अपनी जान बचा सकते तो कृष्ण जिन्न का मुकाबला कदापि न करते। लेकिन जब उन्होंने देखा कि हम लोग रास्ता न जानने के कारण भाग कर जा ही नहीं सकते तब लाचार होकर मरने-मारने के लिए तैयार हो गये थे, मगर कृष्ण जिन्न ने भी उन लोगों को अच्छी तरह यमलोक का रास्ता दिखाया क्योंकि उसके हाथ में तिलिस्मी तलवार थी। जब तेजसिंह और कमलिनी भी तिलिस्मी खंजर चमकाते हुए वहाँ पहुँच गये तब