पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१५०

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तो दुश्मनों ने एकदम ही तलवार हाथ से फेंक दी और 'त्राहि-त्राहि', 'शरण-शरण' पुकारने लगे। उस समय कृष्ण जिन्न ने भी हाथ रोक लिया और तेजसिंह तथा कमलिनी की तरफ देखकर कहा- "बहुत अच्छा हआ जो आप लोग आ गये!"

तेजसिंह--मालूम होता है कि आप ही ने दुश्मनों के आने से हम लोगों को सचेत किया।

कृष्ण जिन्न--हां, वह आवाज मेरी ही थी और मुझी से आप लोग बातचीत कर रहे थे।

तेजसिंह--तो क्या आप ही ने यह कहा था कि 'कोई शैतान बेचारी किशोरी को पकड़े लिए जाता है?'

कृष्ण जिन्न--हाँ, यह मैंने ही कहा था, किशोरी को ले जाने वाला स्वयं उस का बाप शिवदत्त था और वह मेरे हाथ से मारा गया।

कृष्ण जिन्न और भी कुछ कहना चाहता था कि कोई आवाज उसके तथा कमलिनी और तेजसिंह के कानों में पड़ी। आवाज यह थी--"हरी, हरी, तुम लोग भागो और हमारे पीछे-पीछे चले आओ, धन्नसिंह की मदद से हम लोग निकल जायेंगे।" इस आवाज को सुनकर वे लोग भी पीछे की तरफ भाग गये जिन्होंने कृष्ण जिन्न और तेजसिंह के आगे तलवारें फेंक दी थीं मगर कृष्ण जिन्न और तेजसिंह ने उन लोगों को रोकना या मारना उचित न जाना और चुपचाप खड़े रहकर भागने वालों का तमाशा देखते रहे। थोड़ी देर में ही उनके सामने की जमीन दुश्मनों से खाली हो गई और सामने से आती हुई मनोरमा दिखाई पड़ी। मनोरमा को देखते ही कमलिनी तिलिस्मी खंजर उठाकर उसकी तरफ झपटी और उस पर वार करना ही चाहती थी कि मनोरमा ने कुछ पीछे हटकर कहा, "हैं हैं श्यामा, जरा देख के, समझ के !"

मनोरमा की बात और श्यामा का शब्द सुनकर कमलिनी रुक गई और बड़े गौर से मनोरमा का मुंह देखने के बाद बोली, "तू कौन है?"

मनोरमा--बीरूसिंह! कमलिनी-निशान ? मनोरमा-चन्द्रकला।

कमलिनी--तुम अकेले हो या और भी कोई है?

बीरूसिंह--शिवदत्त के सिपाही धन्नूसिंह की सूरत बनाकर मेरे गुरु सरयूसिंह भी आये हैं। उन्होंने दुश्मनों को बाहर निकलने का रास्ता बताया है। इस तहखाने में जितने दरवाजे कल्याणसिंह ने बन्द किये थे वे सब भी गुरुजी ने खोल दिये क्योंकि उनके सामने ही कल्याणसिंह ने सब दरवाजे बन्द किये थे और उन्होंने उसकी तरकीब देख ली थी।

कृष्ण जिन्न--शाबाश ! (कमलिनी से) अच्छा इन लोगों का किस्सा दूसरे समय सूनना, इस समय तुम किशोरी को लेकर राजा वीरेन्द्रसिंह के पास चली जाओ जिसे हमने शिवदत्त के पंजे से छुड़ाया है और जो (हाथ का इशारा करके) उस तरफ जमीन पर बदहवास पड़ी है। अब इस काम में देर मत करो। मैं यहाँ से पुकार कर कह देता हूँ,