जिसमें आप खुश रहें हम लोग वही करेंगे।"
भैरोंसिंह ने बलभद्रसिंह की कलाई पकड़ के कोई नस ऐसी दबाई कि वह बेताब हो गया, उसे ऐसा मालूम हुआ मानो उसके तमाम बदन की ताकत किसी ने खींच ली हो, और वह बिना कुछ बोले इस तरह बैठ गया जैसे कोई गिर पड़ता है। उसकी यह अवस्था देख सभी ने मुस्करा दिया।
जिन्न--(वीरेन्द्रसिंह से) अब मैं आपसे और तेजसिंहजी से दो-चार बातें एकान्त में कहना चाहता हूँ।
वीरेन्द्रसिंह--हमारी भी यही इच्छा है।
इतना कहकर वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह देवीसिंह से कुछ इशारा करके उठ खड़े हुए और दूसरे कमर की ओर चले गये।
राजा वीरेन्द्रसिंह, तेजसिंह और जिन्न आधे घण्टे तक एकान्त में बैठकर बातचीत करते रहे। सभी को जिन्न के विषय में जितना आश्चर्य था उतना ही इस बात का निश्चय भी हो गया था कि जिन्न का हाल राजा वीरेन्द्रसिंह, तेजसिंह और भैरोंसिंह को मालूम हो गया है परन्तु किसी से न कहेंगे और न कोई उनसे पूछ सकेगा।
आधे घण्टे के बाद तीनों आदमी कमरे के बाहर निकलकर अपने-अपने ठिकाने आ पहुंचे और तेजसिंह ने देवीसिंह की तरफ देख के कहा, "भूतनाथ को छोड़ देने की आज्ञा हुई है। तुम भूतनाथ और जिन्न के साथ जाओ और हिफाजत के साथ पहाड़ के नीचे पहुँचाकर लौट आओ।"
इतना सुनते ही देवीसिंह ने भूतनाथ की हथकड़ी-बेड़ी खोल दी और उसको तथा जिन्न को साथ लिये वहाँ से बाहर चले गये। इसके बाद तेजसिंह पर्दे के अन्दर गये और लक्ष्मीदेवी, कमलिनी तथा लाडिली को कुछ समझा-बुझाकर बाहर निकल आए। बलभद्र- सिंह को खातिरदारी और चौकसी के साथ हिफाजत में रखने के लिए भैरोंसिंह के हवाले किया गया होगा और बाकी कैदियों को कैदखाने में पहुँचाने की आज्ञा लेकर राजा वीरेन्द्रसिंह बाहर चले आए तथा अदालत बरखास्त कर दी गई।
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जब जिन्न और भूतनाथ को पहाड़ के नीचे पहुँचाकर देवीसिंह चले गए तो वे दोनों आपस में नीचे लिखी बातें करते हुए पूरब की तरफ रवाना हुए--
भूतनाथ--निःसन्देह आपने मुझ पर बड़ी कृपा की, यदि आज आप मेरे सहायक न होते तो मैं तबाह हो चुका था।
जिन्न--सो सब तो ठीक है, मगर देखो, आज हमने तुमको अपनी जमानत पर इसलिए छुड़ा दिया है कि तुम जिस तरह हो, असली बलभद्रसिंह को खोज निकालो और उन्हें अपने साथ लेकर राजा वीरेन्द्रसिंह के पास हाजिर हो जाओ, लेकिन ऐसा न करना