पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१५२

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इज्जत के साथ रक्खा। आज की बची हुई रात सोच-विचार और तर दुद ही में बीती। शेरअलीखां भूतनाथ और कल्याणसिंह का हाल भी सभी को मालूम हुआ और यह भी मालूम हुआ कि कल्याणसिंह और उसके कई आदमी कैदखाने में बन्द हैं।

दूसरे दिन सवेरे जब राजा वीरेन्द्र सिंह ने कैदखाने में से कल्याणसिंह को अपने पास बुलाया तो मालूम हुआ कि रात ही को होश में आने के बाद कल्याणसिंह ने जमीन पर सिर पटक कर अपनी जान दे दी। वीरेन्द्रसिंह ने उसकी अवस्था पर शोक प्रकट किया और उसकी लाश को इज्जत के साथ जला कर हड्डियां गंगाजी में डलवा देने का हक्म दिया और यही हुक्म शिवदत्त की लाश के लिए भी दिया।

पहर दिन चढ़ने के बाद जब राजा वीरेन्द्र सिंह स्नान और संध्या-पूजा से छुट्टी पा कुछ अन्न-जल ले निश्चिन्त हुए तो महल में अपने आने की इत्तिला करवाई और उसके बाद इन्द्रदेव को साथ लिए हुए महल में जाकर एक सजे हुए सुन्दर कमरे में बैठे। उनकी इच्छानुसार किशोरी, कामिनी, कमला, कमलिनी, लाडिली और लक्ष्मीदेवी अदब के साथ सामने बैठ गई। किशोरी का चेहरा उसके बाप के गम में उदास हो रहा था, राजा वीरेन्द्रसिंह ने उसे समझाया और दिलासा दिया। इसी समय तारासिंह ने राजा साहब के पास पहुँच कर तेजसिंह, भूतनाथ, सरयूसिंह और बीरूसिंह के आने की इत्तिला की और मर्जी होने पर ये लोग राजा वीरेन्द्रसिंह के सामने हाजिर हुए तथा सलाम करने के बाद हुक्म पाकर जमीन पर बैठ गये। इन लोगों के आने का सभी को इन्तजार था, शिवदत्त और कल्याणसिंह की कार्रवाई तथा उनके काम में विघ्न पड़ने का हाल सभी कोई सुनना चाहते थे।

वीरेन्द्रसिंह--(भूतनाथ से) मैंने सुना था कि शेरअलीखाँ को तुम अपने साथ ले गए थे?

भूतनाथ--जी हाँ, शेरअलीखाँ को मैं अपने साथ ले गया था और साथ लेता भी आया, तेजसिंह की आज्ञा से वे अपने डेरे पर चले गए जहाँ रहते थे।

वीरेन्द्रसिंह--(तेजसिंह से)कृष्ण जिन्न तुमको अपने साथ क्यों ले गए थे?

तेजसिंह--कुछ काम था, जो मैं आपसे किसी दूसरे समय कहूँगा। आप पहले सरयूसिंह और भूतनाथ का हाल सुन लीजिये।

वीरेन्द्रसिंह--अच्छी बात है, आज के मामले में निःसन्देह सरयूसिंह ने बड़ो मदद पहुँचाई और भूतनाथ की होशियारी ने भी दुश्मनों का बहुत-कुछ नुकसान किया।

तेजसिंह--जिस तरफ से दुश्मन लोग इस तहखाने के अन्दर आये थे, भूतनाथ और शेरअलीखाँ उसी मुहाने पर जाकर बैठ गए और भाग कर जाते हए दुश्मनों को खब ही मारा, यहाँ तक कि एक भी जीता बचकर न जा सका।

इन्द्रदेव--(सरयूसिंह से) अच्छा, तुम अपना हाल कह जाओ।

इन्द्रदेव की आज्ञा पाकर सरयूसिंह ने अपना और भूतनाथ का हाल बयान किया। मनोरमा और धन्नू सिंह का हाल सुनकर सब कोई हँसने लगे, इसके बाद भूतनाथ का मनोरमा को अपने लड़के नानक के साथ घर भेजकर शेरअलीखां के पास आना, कल्याणसिंह और उसके आदमियों का मुकाबला करना, फिर शेरअलीखाँ को अपने साथ