लेकर सुरंग के मुहाने पर जाकर बैठना और दुश्मनों का सत्यानाश करना इत्यादि बयान किया। इसके बाद तेजसिंह ने एक चिट्ठी राजा वीरेन्द्रसिंह के हाथ में दी और कहा, "कृष्ण जिन्न ने यह चिट्ठी आपके लिए दी है।"
राजा वीरेन्द्रसिंह ने यह चिट्ठी ले ली और मन में पढ़ जाने के बाद इन्द्रदेव के हाथ में देकर कहा,--'आप इसे जोर से पढ़ जाइये, जिसमें सब कोई सुन लें!"
इन्द्रदेव ने चिट्ठी पढ़कर सभी को सुनाई। उसका मतलब यह था--
"इत्तिफाक से आज इस तहखाने में पहुंच गया और किशोरी की जान बच गई। सरयूसिंह और भूतनाथ ने निःसन्देह बड़ी मदद की, सच तो यह है कि आज इन्हीं के बदौलत दुश्मनों ने नीचा देखा, मगर भूतनाथ ने एक काम बड़ी बेवकूफी का किया, अर्थात् मनोरमा को नानक के हाथ में दे दिया और उसे घर ले जाकर असली बलभद्रसिंह का पता लगाने के लिए कहा। यह भूतनाथ की भूल है कि वह नानक को किसी काम के लायक समझता है यद्यपि नानक के हाथ से आज तक कोई काम ऐसा न निकला जिसकी तारीफ की जाये, वह निरा बेवकूफ और गदहा है कोई नाजुक काम उसके हाथ में देना भी भारी भूल है। मनोरमा को उसके हाथ में देकर भूतनाथ ने बुरा किया। नानक कमीने को मालिक के काम का तो कुछ खयाल न रहा और मनोरमा के साथ शादी की धुन सवार हो गई, जिसका नतीजा यह निकला कि मनोरमा ने नानक को खूब जूतियाँ लगाई और तिलिस्मी खंजर भी ले लिया, मैं बहुत खुश होता यदि मनोरमा नानक का कान-नाक भी काट लेती। आपको और आपके ऐयारों को होशियार करता हूँ और कहे देता हूँ कि औरत के गुलाम नानक बेईमान पर कोई भी कभी भरोसा न करे। आप जरूर अपने एक ऐयार को नानक के घर तहकीकात करने के लिए भेजें, तब आपको नानक और नानक के घर की हालत मालूम होगी। अतः अब आपका रोहतासगढ़ में रहना ठीक नहीं है, आप कैदियों और किशोरी, कामिनी, कमलिनी और लक्ष्मीदेवी इत्यादि सभी को लेकर चुनार चले जायें। मैं यह बात इस खयाल से नहीं कहता कि यहां आपको दुश्मनों का डर है, नहीं-नहीं, अव्वल तो अब आपका कोई ऐसा दुश्मन ही नहीं रहा, जो रोहतासगढ़ तहखाने का रत्ती-बराबर भी हाल जानता हो, दूसरे, इस तहखाने के कुछ दरवाजे (दीवानखाने वाले एक सदर दरवाजे को छोड़कर) जो गिनती में ग्यारह थे, मैंने अच्छी तरह बन्द कर दिये और उनका हाल तेजसिंह को बता दिया है। मैं समझता हूँ, इनसे ज्यादा रास्ते तहखाने में आने-जाने के लिए नहीं हैं, इतने रास्तों का हाल यहाँ का राजा दिग्विजयसिंह भी न जानता होगा, हाँ कमलिनी जरूर जानती होगी, क्योंकि वह 'रिक्तगन्य' पढ़ चुकी है। यदि आप तहखाने की सैर किया चाहते हैं, तो इस इरादे को अभी रोक दीजिये, कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्द सिंह के आने पर यह काम कीजियेगा, क्योंकि यहाँ का सबसे ज्यादा हाल उन्हीं दोनों भाइयों को मालूम होगा, हाँ बलभद्रसिंह का पता लगाने का उद्योग करना चाहिए और यहाँ के तहखाने की भी अच्छी तरह सफाई हो जानी चाहिए, जिसमें एक भी मुर्दा इसके अन्दर रह न जाये। यदि इन्द्रदेव चाहें तो नकली बलभद्रसिंह को आप इन्द्रदेव के हवाले कर दीजियेगा और असली बलभद्रसिंह तथा इन्दिरा का पता लगाने का बोझ इन्द्रदेव ही के ऊपर डालियेगा। भूतनाथ को भी