पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१५६

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वीरेन्द्रसिंह ने देवीसिंह के कान में कहा, "लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाडिली की निगहवानी तुम्हारे जिम्मे, मगर गुप्त।"

देवीसिंह सलाम करके पीछे हट गये और दरबार बरखास्त हो गया।


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शेरअलीखां बड़ी इज्जत और आबरू के साथ घर भेजे गये, उनके सेनापति महबूबखाँ को भी छुट्टी मिली, भैरोंसिंह मनोरमा की फिक्र में गये, तारासिंह नानक के घर चले और कुछ फौजी सिपाहियों के साथ नकली बलभद्रसिंह लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाडिली को लिए हए इन्द्रदेव ने अपने गुप्त स्थान की तरफ प्रस्थान किया। भूतनाथ बातें करता हआ उन्हीं के साथ चल पड़ा और थोड़ी दूर जाने के बाद आज्ञा लेकर अपने अडडे की तरफ रवाना हुआ जो बराबर की पहाड़ी पर था. और देवीसिंह ने न मालूम किधर का रास्ता लिया। राजा वीरेन्द्रसिंह की सवारी भी उसी दिन चुनारगढ़ की तरफ चली और तेजसिंह राजा साहब के साथ गये।

हम सबसे पहले तारासिंह के साथ चलकर नानक के घर पहँचते हैं और उसकी जगतप्रिय स्त्री की अवस्था पर ध्यान देते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि लड़कपन में नानक उत्साही था और उसे नाम पैदा करने की बड़ी लालसा थी, परन्तु रामभोली के प्रेम ने उसका खयाल वदल दिया और उसमें खुदगर्जी का हिस्सा कुछ ज्यादा हो गया। आखीर में जब उसने श्यामा नामक एक स्त्री से शादी कर ली, जिसका जिक्र कई दफे लिखा जा चका है, तब से तो उसकी बुद्धि बिल्कुल ही भ्रष्ट हो गई। नानक की स्त्री श्यामा बड़ी चतुर, लालची और कुलटा थी, मगर नानक उसे पतिव्रता और साब्वी जानकर माता के समान उसकी इज्जत करता था। नानक के नातेदार और दोस्तों की आमद-रफ्त उसके घर में विशेष थी। श्यामा को रुपये-पैसे की कमी न थी और वह अपनी दौलत-जमीन के अन्दर गाड कर रखा करती थी, जिसका हाल सिवाय एक नौजवान खिदमतगार के, जिसका नाम हनुमान था और कोई भी नहीं जानता था। हनुमान यद्यपि नानक का नौकर था परन्तु इस सबब से उसकी माँ कुछ दिनों तक भूतनाथ की खिदमत में रह चुकी थी, वह अपने को नौकर नहीं समझता था, वल्कि घर का मालिक समझता था। नानक की स्त्री उसे बहत चाहती थी, यहाँ तक कि एक दिन उसने अपने मुंह से उसे अपना देवर सीकार किया था, इस सबब से वह और भी सिर चढ़ गया था। नानक के यहाँ एक मजदूरनी भी थी, वह नानक के काम की चाहे न हो, मगर उसकी स्त्री के लिए उपयोगी पात्र थी और उसके द्वारा नानक की स्त्री का बहुत काम निकलता था।

तारासिंह अपने दो चेलों को साथ लिए रोहतासगढ़ से रवाना होकर भेस बदले हए तीसरे ही दिन नानक के घर पहुंचा। ठीक दोपहर का समय था और नानक अपने किसी दोस्त के यहाँ गया था, मगर उसका प्यारा खिदमतगार हनुमान दरवाजे पर बैठा