पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१५७

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अपने पड़ौसी साईसों और कोचवानों के साथ गप्पें लड़ा रहा था। तारासिंह थोड़ी देर तक इधर-उधर टहलता और टोह लेता रहा। जब उसे मालूम हो गया कि हनुमान नानक का प्यारा नौकर है और उम्र में भी अपने से बड़ा नहीं है तो वहाँ से लौटा और कुछ दूर जाकर किसी सुनसान अँधेरी गली में मकान किराए पर लेने का बन्दोबस्त करने लगा। संध्या होने के पहले ही इस काम से भी निश्चिन्ती हो गई अर्थात् उसने एक बहुत बड़ा मकान किराये पर ले लिया, जो मुद्दत से खाली पड़ा हुआ था, क्योंकि लोग उसमें भूतप्रेतों का वास समझते थे और कोई उसमें रहना पसन्द नहीं करता था। उसमें जाने के लिए तीन रास्ते थे और उसके अन्दर कई कोठरियाँ ऐसी थीं कि यदि उसमें किसी को बन्द कर दिया जाये, तो हजार चिल्लाने और ऊधम मचाने पर भी किसी बाहर वाले को खबर न हो। तारासिंह ने उसी मकान में डेरा जमाया और बाजार जाकर दो ही घण्टे में वे सब चीजें खरीद लाया, जिनकी उसने जरूरत समझी और जो एक अमीराना ढंग से रहने वाले आदमी के लिए आवश्यक थीं। इस काम से भी छुट्टी पाकर उसने मोमबत्ती जलाई और आईना तथा ऐयारी का बटुआ सामने रखकर अपनी सूरत बदलने का उद्योग करने लगा। शीघ्र ही एक खूबसूरत नौजवान अमीर की सूरत बनाकर वह घर से बाहर निकला और मकान में एक चेले को छोड़ कर नानक के घर की तरफ रवाना हुआ। दूसरा चेला जो तारासिंह के साथ था उसे बहुत-सी बातें समझाकर दूसरे काम के लिए भेजा।

जब तारासिंह नानक के मकान पर पहुंचा, तो उसने हनुमान को दरवाजे पर बैठा पाया। इस समय हनुमान अकेला था और हुक्का पीने का बन्दोबस्त कर रहा था। उसके पास ही ताक (आला) पर एक चिराग जल रहा था जिसकी रोशनी चारों तरफ फैल रही थी। तारासिंह हनुमान के पास जाकर खड़ा हो गया। हनुमान ने बड़े गौर से उसकी सूरत देखी और रौब में आकर हुक्का छोड़ के खड़ा हो गया। उस समय चिराग की रोशनी में तारासिंह बड़े शान-शौकत का आदमी मालुम पड़ रहा था। खूबसूरती बनाने की तारासिंह को जरूरत न थी, क्योंकि वह स्वयं खबसरत और नौजवान आदमी था, परन्तु रूप बदलने की नीयत से उसने अपने चेहरे पर रोगन जरूर लगाया था, जिससे वह इस समय और भी खूबसूरत और शौकीन लग रहा था।

तारासिंह को देखते ही हनुमान उठ खड़ा हुआ और हाथ जोड़कर बोला, 'हुक्म !'

तारासिंह--हमारे साथ एक नौकर था, वह राह भूल कर न मालूम कहाँ चला गया, उम्मीद थी कि वह हमको ढूंढ़ने के बाद सीधा घर पर चला जायेगा, मगर इस समय प्यास के मारे हमारा गला सूखा जा रहा है।

हनुमान--(एक छोटी चौकी की तरफ इशारा करके) सरकार इस चौकी पर वैठ जायें, मैं अभी पानी लाता हूँ।

इतना सुनकर तारासिंह चौकी पर बैठ गया और हनुमान पानी लाने के लिए अन्दर चला गया। थोड़ी देर में पानी का भरा हुआ एक लोटा और गिलास लिए हनुमान बाहर आया और तारासिंह को पीने के लिए गिलास में पानी ढाल कर दिया, उसी समय तारासिंह ने दरवाजे का पर्दा हिलते हुए देखा और यह भी मालूम किया कि कोई औरत