नौकर--श्यामा के एक प्रेमी का नाम 'जलशायी बाबू' है।
तारासिंह---(गौर करके) जलशायी बाबू को तो मैं जानता हूँ, वे तो बड़े नेक और बुद्धिमान हैं।
नौकर--जी हाँ, वही लम्बे और गोरे से, वे तरह-तरह के कपड़े राजधानी से लाकर उसे दिया करते हैं, और दूसरे प्रेमी का नाम 'त्रिभुवन नायक' है और उन्हें महत्व की पदवी भी है, और तीसरे प्रेमी का नाम मायाप्रसाद है जो राजा साहब के कोषाध्यक्ष हैं, और चौथे प्रेमी का नाम आनन्दवन बिहारी है, और पाँचवें।
तारासिंह--बस-बस-बस, मैं विशेष नाम सुनना पसन्द नहीं करता।
नौकर--जो हुक्म, (एक कागज दिखाकर) मैं तो पचीसों नाम लिख लाया हूँ।
तारासिंह--ठीक है, तुम इस फेहरिस्त को अपने पास रखो, आवश्यकता पड़ने पर महाराज को दिखाई जायेगी, हमारा काम तो उसके आज यहाँ आ जाने से ही निकल जायेगा।
नौकर--जी हाँ, आज वह यहाँ जरूर आवेगी, हनुमान मेरे साथ आकर घर देख गया है।
4
रात लगभग घण्टे भर के जा चुकी है। नानक के घर में उसकी स्त्री शृंगार कर चुकी है और कपड़े बदलने की तैयारी कर रही है। वह एक खुले हुए संदूक के पास खड़ी तरह-तरह की साड़ियों पर नजर दौड़ा रही है और उनमें से एक साड़ी इस समय पहनने के लिए चुना चाहती है। हाथ में चिराग लिए हुए हनुमान उसके पास खड़ा है।
हनुमान--मेरी प्यारी भावज, यह काली साड़ी बड़ी मजेदार है, बस इसी को निकाल लो और यह चोली भी अच्छी है।
म्यामा--यह मुझे पसन्द नहीं। तू घड़ी-घड़ी मुझे 'भावज' क्यों कहता है?
हनुमान--क्या तुम मेरी भावज नहीं हो?
श्यामा--भावज तो जरूर हैं, यदि तू दूसरी मां का बेटा होता तो हमारी आधी दौलत बँटवा लेता और ऐसा न होने पर भी मैं तुझे देवर समझती हूँ, मगर भावज पुकारने की आदत अच्छी नहीं, अगर कोई सुन लेगा तो क्या कहेगा!
हनुमान--यहां इस समय सुनने वाला कौन है?
श्यामा--इस समय यहाँ चाहे कोई न हो, मगर पुकारने की आदत पड़ी रहने से कभी न कभी किसी के सामने...
हनुमान--नहीं-नहीं, मैं ऐसा बेवकूफ नहीं हूँ। देखो, इतने दिनों से मुझसे तुमसे गुप्त प्रेम है, मगर आज तक किसी को मालूम न हुआ। अच्छा देखो यह साड़ी बढ़िया है इसको जरूर पहनो।