पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
158
 

भीतर से झांक रही है। पानी पीने के बाद तारासिंह ने पाँच रुपये हनुमान के हाथ में दिये और वहां से उठकर दूसरी तरफ का रास्ता लिया।

हनुमान केवल एक गिलास पानी पिलाने के बदले में पांच रुपये पाकर बड़ा ही प्रसन्न हुआ और दाता की अमीरी पर आश्चर्य करने लगा। उसे विश्वास हो गया कि यह कोई बड़ा भारी अमीर आदमी या कोई राजकुमार है और साथ ही इसके दिल का अमीर तथा जी खोल कर देने वाला भी है।

दूसरे दिन संध्या के पहले ही हनुमान ने तारासिंह को अपने दरवाजे के सामने से जाते देखा और उसके साथ एक नौकर को भी देखा जो बड़े शान के साथ कीमती कपड़े पहने और तलवार लगाए, तारासिंह के पीछे-पीछे जा रहा था। हनुमान ने उठकर तारासिंह को बड़े अदब के साथ सलाम किया। तारासिंह ने अपने नौकर को जो वास्तव में उसका चेला था, कुछ कहकर हनुमान के पास छोड़ा और आगे का रास्ता लिया।

तारासिंह के नौकर में और हनुमान में दो घण्टे तक खूब बातचीत हुई, जिसे हम यहाँ लिखना नापसन्द करते हैं, हाँ, इस बातचीत का जो कुछ नतीजा निकला वह अवश्य दिखाया जायेगा क्योंकि नानक के घर की जाँच करने ही के लिए तारासिंह का आना इस शहर में हुआ था।

बहुत देर तक बातचीत करने के बाद तारासिंह का नौकर उठ खड़ा हआ और हनुमान के हाथ में कुछ देकर घर का रास्ता लिया जहाँ तारासिंह उसके आने का इन्तजार कर रहा था। जब तारासिंह ने नौकर को आते देखा तो पूछा--

तारासिंह--कहो, क्या हुआ?

नौकर--सब ठीक है, वह तो आपको देख भी चुकी है।

तारासिंह--हाँ, रात को जब मैं वहां पानी पी रही था, टाट का पर्दा हिलते हुए देखा था, तो और भी कुछ हालचाल मालूम हुआ?

नौकर--जी हाँ, बड़ी-बड़ी बातें हुईं। वह तो पूरी खानगी है, कल दोपहर के पहले मैं आपको उन लोगों के नाम भी बताऊँगा, जिनसे उसका ताल्लुक है और उम्मीद है कि कल वह स्वयं बन-ठनकर आपके पास आवे।

तारासिंह--ठीक है, तो क्या तुम्हें उसका नाम भी मालूम हुआ?

नौकर--जी हाँ, उसका नाम श्यामा है और अपने पति अर्थात् नानक के लिए तो वह रूपविता नायिका है।

तारासिंह--बड़े अफसोस की बात है। निःसन्देह भूतनाथ के लिए यह एक कलंक है। ऐसी औरत का पति इस योग्य नहीं कि हम लोग उसे अपने पास बिठावें या उसका छआ पानी भी पीयें। खैर, अब तुम घर में बैठो, मैं गश्त लगाने के लिए जाता हूं।

दूसरे दिन दोपहर के समय तारासिंह का वही नौकर नानक के घर से निकला तथा इधर-उधर से घूमता-फिरता तारासिंह के पास आया और बोला, "आज प्रयासाने कई प्रेमियों के नाम मैं लिख लाया हूँ।"

तारासिंह--अच्छा बताओ तो सही, शायद उन लोगों में से किसी को मैं जानता हूँ या किसी का नाम भी सुना हो।