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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१६१

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गुण की प्रशंसा करने लगा।

श्यामारानी को वैठे अभी कुछ भी देर न हुई थी कि कोठरी के बाहर से चिल्लाने की आवाज आई। यह आवाज नानक के प्यारे नौकर हनुमान की थी और साथ ही किसी औरत के बोलने की आवाज भी आ रही थी।



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किशोरी कामिनी, कमला इत्यादि तथा और बहुत से आदमियों को लिए हुए राजा वीरेन्द्र सिंह चुनार की तरफ रवाना हुए। किशोरी और कामिनी की खिदमत के लिए साथ में एक सौ पन्द्रह लौडियाँ थी जिनमें से बीस लौंडियां तो उनमें से थीं जो राजा दिग्विजयसिंह की रानी के साथ रोहतासगढ़ में रहा करती थीं और रोहतासगढ़ के फतह हो जाने के बाद राजा वीरेन्द्रसिंह की ताबेदारी स्वीकार कर चुकी थीं, बाकी लौंडियां नई रक्खी गई थीं। इसके अतिरिक्त रोहतासगढ़ से बहुत-सी चीजें भी राजा वीरेन्द्रसिंह ने साथ ले ली थीं जिन्हें उन्होंने बेशकीमत या नायाब समझा था। रवाना होने के समय राजा साहब ने उन ऐयारों को भी अपने चुनारगढ़ जाने की इत्तिला दिलवा दी थी जो राजगृह तथा गयाजी इन्तजाम करने के लिए मुकर्रर किये गए थे।

जिस समय राजा वीरेन्द्रसिंह चुनारगढ़ की तरफ रवाना हुए, रात घण्टे भर से कुछ ज्यादा बाकी थी और पांच हजार फौज के अतिरिक्त चार हजार दूसरे काम-काज के आदमी भी साथ में थे। इसी भीड़ में मिली-जुली साधारण लौंडी का भेष धारण किये मनोरमा भी जाने लगी। उसे अपना काम पूरा होने की पक्की उम्मीद थी और वह इस धुन में लगी हुई थी कि किशोरी और कामिनी की लौंडियों में से कोई लौंडी किसी तरह पीछे रह जाय तो काम चले।

पहर दिन चढ़े तक राजा वीरेन्द्रसिंह का लश्कर बरावर चलता गया। जब धूप हुई तो एक हरे-भरे जंगल में पड़ाव डाला गया जहाँ डेरे-खेमे का इन्तजाम पहले ही से हो चुका था। पड़ाव पड़ जाने के थोड़ी देर बाद डेरों-खेमों से लदे हुए सैकड़ों ऊँट आगे की तरफ रवाना हुए जिनसे दूसरे दिन के पड़ाव का इन्तजाम होने वाला था। बाकी का दिन और तीन पहर रात तक वह जंगल गुलजार रहा और पहर रात रहते फिर वहाँ से लश्कर का कूच शुरू हुआ।

इसी तरह कूच-दर-कूच करते वीरेन्द्रसिंह का लश्कर चुनारगढ़ की तरफ रवाना हुआ। तीन दिन तक तो मनोरमा का काम कुछ भी न हुआ, पर चौथे दिन उसे अपना काम निकालने का मौका मिला जब किशोरी की एक लौंडी, जिसका नाम दया था, हाथ में लोटा लिए मैदान जाने की नीयत से पड़ाव के बाहर निकली। उस समय घड़ी-भर रात जा चुकी थी और चारों तरफ अंधकार छाया हुआ था। दया रोहतासगढ़ के राजा दिग्विजयसिंह की लौंडियों में से थी और जब किशोरी कैदियों की तरह रोहतासगढ़ में