पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१६४

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ने किशोरी की लौंडियों के आने की इत्तिला की। तेजसिंह तुरन्त उठ बैठे और इन लौंडियों को अपने पास हाजिर करने की आज्ञा दी। थोड़ी ही देर में दो लौंडियाँ तेजसिंह के सामने आईं, जिनमें से एक वही दया थी जिसे वास्तव में मनोरमा कहना चाहिए।

तेजसिंह--(लौंडियों से) इस समय तुम लोगों के आने से मुझे आश्चर्य मालूम होता है।

दयावती--निःसन्देह आश्चर्य होता होगा परन्तु क्या किया जाये, किशोरीजी की आज्ञा से हम लोगों को आना पड़ा।

तेजसिंह--क्या समाचार है?

दयावती--किशोरीजी ने हम लोगो को आपके पास भेजा है और कहा है कि 'यहाँ से थोड़ी दूर पर कोई ऐसी इमारत है जिसके अन्दर तिलिस्म होने का शक है। जब मैं कैदियों की तरह रोहतासगढ़ में रहती थी तो यह बात राजा दिग्विजयसिंह की जुबानी सुनने में आई थी। यदि यह बात ठीक तो आपकी कृपा से मैं इस इमारत को देखना चाहती हूँ!'

तेजसिंह--किशोरी का कहना तो ठीक है, निःसन्देह यहाँ से थोड़ी ही दूर पर एक इमारत है जिसमें तरह-तरह की अद्भुत बातें देखने में आती हैं और मैं उस इमारत को देख चका है, मगर एक साथ कई आदमियों का उस इमारत के अन्दर जाना बहुत कठिन है। (कुछ सोचकर) अच्छा तुम लोग चलो, मैं महाराज से वहां जाने की आज्ञा लेकर बहुत जल्द किशोरी के पास आता हूँ।

दयावती--जो आज्ञा।

दोनों लौंडियां सलाम करके किशोरी के पास चली गई और जो कुछ तेजसिंह ने उनसे कहा था वह किशोरी के सामने अर्ज किया। इस समय वहाँ किशोरी, कामिनी और कमला एक साथ बैठी हुई थीं और कई लौंडियां भी मौजद थीं।

थोडी देर बाद तेजसिंह के आने की इत्तिला मिली और कमला उनको लेने के लिए खेमे के बाहर गई। जब तेजसिंह खेमे के अन्दर आये तो उन्हें देख किशोरी और कामिनी उठ खड़ी हुई और जब तेजसिंह बैठ गये तो अदब के साथ उनके सामने बैठ गई। तेजसिंह-(किशोरी से)उस इमारत की याद यकायक कैसे आ गई?

किशोरी-अकस्मात् उस इमारत की याद आ गई। कामिनी बहिन को भी उसके देखने का बहुत शौक है। मैंने सोचा कि ऐसा मौका फिर काहे को मिलेगा। वह इमारत रास्ते में ही में पड़ती है, यदि आपकी कृपा होगी तो हम लोग उसे देख लेंगी।

तेजसिंह--बात तो ठीक है, और वह इमारत भी देखने योग्य है, मैं तुम्हें वहाँ ले जा सकता हैं और महाराज से आज्ञा भी ले आता हूँ मगर तुम अपने साथ किसी लौंडी को वहाँ न ले जा सकोगी।

किशोरी–-कामिनी बहिन और कमला का चलना तो आवश्यक है और ये दोनों न जायेंगी तो मुझे उसके देखने का आनन्द ही क्या मिलेगा?