तेजसिंह--इन दोनों के लिए मैं मना नहीं करता, मैं रथ जोतने के लिए हुक्म दे आया हूँ अभी आता होगा, तुम तीनों उस रथ पर सवार हो जाओ, घोड़े की रास मैं लूंगा और तुम लोगों को वहाँ ले चलूंगा, सिवाय हम चार आदमियों के और कोई भी न जायेगा।
किशोरी-–जब स्वयं आप हम लोगों के साथ हैं तो हमें और किसी की जरूरत क्या है?
तेजसिंह--यदि इस समय हम लोग रथ पर सवार होकर रवाना होंगे तो घण्टे भर के अन्दर ही वहाँ जा पहुँचेंगे, छः-सात घण्टे में उस इमारत को अच्छी तरह से देख लेंगे, इसके बाद यहाँ लौटने की कोई जरूरत नहीं है, अगले पड़ाव की तरफ चले जायेंगे, जब तक हमारा लश्कर यहाँ से कूच करके अगले पड़ाव पर पहुँचेगा तब तक हम लोग भी वहाँ पहुँच जायेंगे।
किशोरी--जैसी मर्जी।
थोड़ी ही देर बाद इत्तिला मिली कि दो घोड़ों का रथ हाजिर है। तेजसिंह उठ खड़े हुए, पर्दे का इन्तजाम किया गया। किशोरी, कामिनी और कमला उस पर सवार कराई गईं, तेजसिंह ने घोड़ों की रास सम्हाली और रथ तेजी के साथ वहाँ से रवाना हुआ।
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रात बीत गई, पहर भर दिन चढ़ने के बाद राजा वीरेन्द्रसिंह का लश्कर अगले पड़ाव पर जा पहुंचा और उसके घण्टे भर बाद तेजसिंह भी रथ लिये हुए आ पहुँचे। रथ जनाने डेरे के आगे लगाया गया, पर्दा करके जनानी सवारी (किशोरी, कामिनी और कमला)उतारी गई और रथ नौकरों के हवाले करके तेजसिंह राजा साहब के पास चले गये।
आज के पड़ाव पर हमारे बहुत दिनों के बिछड़े हुए ऐयार लोग अर्थात् पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल और पण्डित बद्रीनाथ भी आ मिले क्योंकि इन लोगों को राजा साहब के चुनारगढ़ जाने की इत्तिला पहले ही से दे दी गई थी। ये लोग उसी समय उस खेमे से चले गये जहाँ कि राजा वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह एकान्त में बैठे बातें कर रहे थे। इन चारों ऐयारों को आशा थी कि राजा वीरेन्द्रसिंह के साथ-ही-साथ चुनारगढ़ जायेंगे मगर ऐसा न हुआ। इसी समय कई काम उन लोगों के सुपुर्द हुए और राजा साहब की आज्ञानुसार वे चारों ऐयार वहाँ से रवाना होकर पूरब की तरफ चले गये।
राजा वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह को इस बात की आहट लग गई थी कि मनोरमा भेष बदले हुए हमारे लश्कर के साथ चल रही है और धीरे-धीरे उसके मददगार लोग भी रूप बदले हुए लश्कर में चले आ रहे हैं मगर तेजसिंह को उसके गिरफ्तार करने का मौका