के पास है, परन्तु तुम्हारे पास तिलिस्मी खंजर कहाँ से आ गया जिससे तुमने काम लिया और जो अब तक तुम्हारे पास है।
भूतनाथ--आपको मालूम हुआ होगा कि मेरा खंजर जो मायारानी ने ले लिया था उसे कृष्ण जिन्न ने रोहतासगढ़ किले के अन्दर उस समय मायारानी से छीन लिया था जब वह शेरअलीखाँ को लेकर वहाँ गई थी।
कमलिनी–-हाँ, ठीक है, तो क्या वही खंजर कृष्ण जिन्न ने फिर तुम्हें दे दिया ?
भूतनाथ--जी हाँ, (तिलिस्मी खंजर और उसके जोड़ की अंगठी कमलिनी के आगे रखकर) अब यदि मर्जी हो तो ले लीजिये, यह हाजिर है।
कमलिनी--(कुछ सोचकर) नहीं, अब यह खंजर तुम अपने ही पास रखो, जब कृष्ण जिन्न ने जिन्हें राजा वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह मानते हैं, तुम्हें दे दिया तो अब बिना उनकी इच्छा के छीन लेना मैं उचित नहीं समझती। (ऊँची साँस लेकर) क्या कहा जाय, तुम्हारे मामले में अक्ल कुछ भी काम नहीं करती।
इन्द्रदेव--भूतनाथ तुम देखते हो कि नकली बलभद्र सिंह को मैं अपने साथ लिए जाता हूँ, अगर तुम भी मेरे साथ चल के उससे बातचीत करते तो...
भूतनाथ--नहीं-नहीं, आप मुझे अपने साथ ले चलकर उसका मुकाबला न कराइये, उसका सामना होने से ही मेरी जान सूख जाती है ! यह तो मैं जानता ही है कि एक न एक दिन मेरा और उसका सामना धूमधाम के साथ होगा और जो कछ कसर मैंने किया है या उसका बिगाड़ा है, खुले बिना न रहेगा, परन्तु अभी आप क्षमा करें, थोड़े दिनों में मैं अपने बचाव का सामान इकट्ठा कर लूंगा और तब तक बलभद्रसिंह का भी पता लग जायगा, उनसे भी सहायता मिलने की मुझे आशा है। हाँ, यदि आप मेरी प्रार्थना स्वीकार न करें तो लाचार मैं साथ चलने के लिए हाजिर हैं।
इन्द्रदेव--(कुछ सोचकर) खैर, कोई चिन्ता नहीं। तुम जाओ, वलभद्रसिंह को खोज निकालने का उद्योग करो, और इन्दिरा का भी पता लगाओ। अब मुझसे कब मिलोगे?
भूतनाथ--आठ-दस दिन के बाद आपसे मिलूंगा, फिर जैसा मौका हो। कमलिनी--अच्छा जाओ, मगर जो कुछ करना है, उसे दिल लगा के करो।
भतनाथ--मैं कसम खाकर कहता हूँ कि बलभद्रसिंह को खोज निकालने की फिक्र सबसे ज्यादा दुनिया में जिस आदमी को है वह मैं हूँ।
इतना कहकर भूतनाथ उठ खड़ा हुआ और अपने अड्डे की तरफ चल दिया। तीसरे दिन अपने अड्डे पर पहुँचा जो 'बराबर' की पहाड़ी पर था। वहाँ उसने अपने आदमी दाऊ बाबा की जुवानी नानक का हाल सुना और क्रोध में भरा हुआ केवल दो घण्टे वहाँ रहने के बाद पहाड़ी के नीचे उतरकर उस जंगल की तरफ रवाना हो गया जहाँ पहले-पहले श्यामसुन्दरसिंह और भगवनिया के सामने नकली बलभद्रसिंह से उसकी मुलाकात हुई थी।