और उत्तर के कोने में पहुँचेंगे तो एक गुफा मिलेगी। आप उस गुफा के अंदर चले जाइये। लगभग दो-सौ कदम जाने के बाद जब आप बाहर निकलेंगे तो अनपढ़ और मोटे-मोटे पत्थर के ढोकों से बनी हुई दीवारें मिलेंगी जिसके बीचोबीच में एक बहुत बड़ा लकड़ी का दरवाजा लगा है। यदि दरवाजा खुला है तो आप दीवार के उस पार चले जाइये और एक पुरानी मगर बहुत बड़ी इमारत पर नजर डालिए। यद्यपि यह मकान बहुत पुराना है और कई जगह से टूट भी गया है तथापि जो कुछ बचा है बहुत मजबूत और पचासों बरसात सहने योग्य है, जिसमें अब भी कई बड़े-बड़े दालान और कोठरियां मौजूद हैं और उसी मकान या स्थान का नाम 'लामाघाटी' है। भूतनाथ के आदमी या नौकर-चाकर इसी मकान में रहते हैं और अपनी स्त्री को भी वह इसी जगह छोड़ गया था। उसके सिपाही जो बड़े ही दिमागदार, बहुत कट्टर और साथ ही इसके ईमानदार भी थे, गिनती में पचास से कम न थे और भूतनाथ के खजाने को हिफाजत बड़ी मुस्तैदी और नेकनीयती के साथ करते थे तथा बड़े-बड़े कठिन कामों को पूरा करने के लिए भूतनाथ की आज्ञा पाते ही मुस्तैद हो जाते थे। उस मकान के चारों तरफ बहुत बड़ा मैदान छोटे-छोटे जंगली खूब- सूरत पौधों से हरा-भरा बहुत ही खूबसूरत मालूम पड़ता था और उसके बाद भी चारों तरफ की पहाड़ियों के ऊपर जहाँ तक निगाह काम कर सकती थी छोटे-छोटे खूबसूरत पेड़- पौधे दिखाई पड़ते थे।
भूतनाथ इसी लामाघाटी में पहुँचा। पहुँचने के साथ ही चारों तरफ से उसके आदमियों ने खुशी-खुशी उसे घेर लिया और कुशल-मंगल पूछने लगे। भूतनाथ सभी से हँसकर मिला और 'हाँ, सब ठीक है, मेरा आना जिस लिये हुआ उसका हाल जरा ठहरकर कहूँगा' इत्यादि कहता हुआ अपनी स्त्री के पास चला गया जो बहुत दिनों से उसे देखे बिना बेताव हो रही थी। हँसी-खुशी से मिलने के बाद दोनों में यों बातचीत होने लगी-
स्त्री--तुम बहुत दुबले और उदास मालूम पड़ते हो!
भूतनाथ--हाँ, इधर कई दिन मुसीबत ही में कटे हैं।
स्त्री--(चौंककर) सो क्यों, कुशल तो है?
भूतनाथ--कुशल क्या, जान बच गई यही गनीमत है।
स्त्री--सो क्यों ? तुम्हारा भेद खुल गया?
भूतनाथ--(ऊँची सांस लेकर) हां, कुछ खुल ही गया।
स्त्री--(हाथ मलकर) हाय-हाय, यह तो बड़ा ही गजब हुआ!
भूतनाथ--बेशक गजब हो गया।
स्त्री--फिर तुम बचकर कैसे निकल आये?
भूतनाथ--ईश्वर ने एक सहायक भेज दिया जिसने अपनी जमानत पर महीने भर के लिए मुझे छोड़ दिया।
स्त्री--तो क्या महीने भर के बाद तुम्हें फिर हाजिर होना पड़ेगा?
भूतनाथ--हाँ।
स्त्री--किसके आगे ?
भूतनाथ--राजा वीरेन्द्रसिंह के आगे।