पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/२०

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स्त्री--राजा वीरेन्द्रसिंह से क्या सरोकार ? तुमने उनका तो कभी कुछ बिगाड़ा नहीं था।

भूतनाथ--इतनी ही तो कुशल है कि वह दूसरी जगह जाने के बदले सीधा लक्ष्मीदेवी के पास चला गया।

स्त्री--(चौंककर) हैं, क्या लक्ष्मीदेवी जीती है?

भूतनाथ–-हाँ जीती है। मुझे इस बात की खबर कुछ भी न थी कि कमलिनी के साथ जो तारा रहती है, वह वास्तव में लक्ष्मीदेवी है और बालासिंह को यह बात मालूम हो गई थी, इसलिए वह सीधा लक्ष्मीदेवी के पास चला गया। यदि मुझे पहले लक्ष्मीदेवी की खबर लग गई होती तो आज मैं राजा वीरेन्द्रसिंह के आगे अपनी तारीफ सुनता होता।

स्त्री--तुम तो कहते थे कि बालासिंह मर गया।

भूतनाथ–-हाँ, मैं ऐसा जानता था।

स्त्री--उसी ने तुम्हारी सन्दूकड़ी चुराई थी?

भूतनाथ–-हाँ, जब सन्दूकड़ी उसने चुराई थी, तभी मैं अधमरा हो चुका था। मगर यह सुनकर कि वह मर गया मैं निश्चिन्त भी हो गया था, परन्तु जिस समय वह यकायक मेरे सामने आ खड़ा हुआ मुझे बड़ा ही आश्चर्य हुआ। उसके हाथ में वह गठरी उसी कपड़े में बंधी उसी तरह लटक रही थी जैसी तुम्हारे सन्दुक से चोरी की गई थी और जिसे देखने के साथ ही मैं पहवान गया। ओफ, मैं नहीं कह सकता कि उस समय मेरी क्या हालत थी। मेरे होश-हवास दुरुस्त न थे और मैं अपने को जिन्दा नहीं समझता था। इस बात के दो-चार दिन पहले जब मैं राजा गोपालसिंह के साथ किशोरी और कामिनी को कमलिनी के मकान में पहुँचाने गया था तो उसी समय तारा पर मुझे शक हो गया मगर अपनी भलाई का कोई दूसरा ही रास्ता सोचकर मैं उस समय चुप रहा परन्तु जिस समय बालासिंह से यकायक मुलाकात हो गई और उसने उस गठरी की तरफ इशारा करके मुझसे कहा कि इसमें सुहागिन तारा की किस्मत बन्द है उसी समय मुझे विश्वास हो गया कि तारा वास्तय में लक्ष्मीदेवी है और वह कागज का मुट्ठा भी इसी ने चुरा लिया है जिसे मैंने बड़ी मेहनत से बटोरकर नकल करके रखा था। मैं उस समय बदहवास हो गया और अफसोस करने लगा कि जिन कागजों से मैं फायदा उठाने वाला था वही अब मुझे चौपट करेंगे क्योंकि वह उन्हीं कागजों से मुझी को दोषी ठहराने का उद्योग करेगा। यदि वह सन्दूकड़ी उसके पास न होती तो मैं हताश न होकर और कोई बन्दोबस्त करता परन्तु उस सन्दूकड़ी के खयाल ही से मैं पागल हो गया और उस समय तो मैं बिलकुल ही मुर्दा हो गया जब उसकी बेगम पर मेरी निगाह पड़ी।

स्त्री--(चौंककर) क्या बेगम भी जीती है?

भूतनाथ--हां, उस समय वह उसके साथथी और थोड़ी ही दूर पर एक झाड़ी के अन्दर छिपी हुई थी।

स्त्री--यह बड़ा ही अंधेर हुआ, अगर तुम्हें मालूम होता कि वह जीती है तो तुम अपना नाम भूतनाथ काहे को रखते !