जायेगा। (लम्बी साँस लेकर) क्या कहें, कम्बख्त सरयू किसी तरह मानती ही नहीं। उसे मेरी बातों पर कुछ भी विश्वास नहीं होता, यद्यपि कल मैं उसे फिर दिलासा दूंगा, अगर उसने मेरे दम में आकर अपने हाथ से चिट्ठी लिख दी, तो इस काम को खत्म समझो, नहीं तो तुम्हें पुनः मेहनत करनी पड़ेगी। सरयू और इन्दिरा ने मेरे कहे मुताबिक चिट्ठी लिख दी, तो मैं बहुत जल्द उन दोनों को मारकर बखेड़ा तय करूंगा, क्योंकि मुझे गदाधरसिंह (भूतनाथ) का डर बराबर बना रहता है, वह सरयू और इन्दिरा की खोज में लगा हुआ है और उसे घड़ी-घड़ी मुझी पर शक होता है। यद्यपि मैं उससे कसम खाकर कह चुका हूँ कि मुझे दोनों का हाल कुछ भी मालूम नहीं है मगर उसे विश्वास नहीं होता। क्या करूँ, लाखों रुपये दे देने पर भी मैं उसकी मुट्ठी में फंसा हुआ हूँ, यदि उसे जरा भी मालूम हो जायेगा कि सरयू और इन्दिरा को मैंने कैद में रखा है तो वह बड़ा ही ऊधम मचावेगा और मुझे बरबाद किये बिना न रहेगा।
आदमी--गदाधरसिंह तो मुझे आज भी मिला था।
दारोगा--(चौंक कर) क्या वह फिर इस शहर में आया है? मुझसे तो कह गया था कि मैं दो-तीन महीने के लिए जाता हूं, मगर वह तो दो-तीन दिन भी गैरहाजिर न रहा था।
आदमी--वह बड़ा शैतान है, उसकी बातों का कुछ भी विश्वास नहीं हो सकता, और इसका जानना तो बड़ा ही कठिन है कि वह क्या करता है, क्या करेगा या किस धुन में लगा हुआ है।
दारोगा--अच्छा, तो मुलाकात होने पर उससे क्या-क्या बात हुई?
आदमी–-मैं अपने घर की तरफ जा रहा था कि उसने पीछे से आवाज दी, "ओ रघुबरसिंह, ओ जयपालसिंह !"1
दारोगा--बड़ा ही बदमाश है, किसी का अदब लिहाज करना तो जानता ही नहीं ! अच्छा, तब क्या हुआ?
रघुबर--उसकी आवाज सुनकर मैं रुक गया, जब वह पास आया, तो बोला, "आज आधी रात के समय मैं दारोगा साहब से मिलने जाऊँगा, उस समय तुम्हें भी वहाँ मौजूद रहना चाहिए।" बस, इतना कहकर चला गया।
दारोगा तो इस समय वह आता ही होगा?
रघुबर--जरूर आता होगा।
दारोगा--कम्बख्त ने नाक में दम कर दिया है।
इतने ही में बाहर से घंटी बजने की आवाज आई, जिसे सुन दारोगा ने रघुबरसिंह से कहा, "देखो, दरबान क्या कहता है, मालूम होता है, गदाधरसिंह आ गया।"
रघबरसिंह उठकर बाहर आया और थोड़ी ही देर में गदाधरसिंह को अपने साथ लिा हा दारोगा के पास आया। गदाधरसिह को देखते ही दारोगा उठ खडा हआ और बडी खातिरदारी और तपाक के साथ मिलकर उसे अपने पास बैठाया।
1. जयपालसिंह, बालासिंह और रघुबरसिंह ये सब नाम उसी नकली बलभद्रसिंह के हैं।