पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/२०१

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दारोगा ने भी मुझे दूर से देखा और कदम बढ़ाता हुआ हम दोनों के पास पहुँचा। मारे क्रोध के उसकी आँखें लाल हो रही थीं और होंठ काँप रहे थे। उसने अन्ना की तरफ देख कर कहा, "क्यों री कम्बख्त लौंडी, अब तू मेरे हाथ से बचकर कहाँ जायगी? यह सारा फसाद तेरा ही उठाया हुआ है, न तू दरवाजा खोलकर दूसरे कमरे में जाती न गदाधर- सिंह को इस बात खबर होती। तूने ही इन्दिरा को ले भागने की नीयत से मेरी जान आफत में डाली थी, अतः अब मैं तेरी जान लिए बिना नहीं रह सकता, क्योंकि तुझ पर मुझे बड़ा ही क्रोध है।"

इतना कह दारोगा ने म्यान से तलवार निकाल ली और एक ही हाथ में बेचारी अन्ना का सिर धड़ से अलग कर दिया, उसकी लाश तड़पने लगी और मैं चिल्लाकर उठ खड़ी हुई।

इतना हाल कहते-कहते इन्दिरा की आँखों में आंसू भर आये। इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह और राजा गोपाल सिंह को भी उसकी अवस्था पर बड़ा दुःख हुआ और बेई- मान नमकहराम दारोगा को क्रोध से याद करने लगे। तीनों भाइयों ने इन्दिरा को दिलासा दिया और चुप करा के अपना किस्सा पूरा करने के लिए कहा। इन्दिरा ने आँसू पोंछकर फिर कहना शुरू किया-

इन्दिरा-- उस समय मैं समझती थी कि दारोगा मेरी अन्ना को तो मार ही चुका है, अब उसी तलवार से मेरा भी सिर काट के बखेड़ा तय करेगा, मगर ऐसा न हुआ, उसने रूमाल से तलवार पोंछकर म्यान में रख ली और अपने नौकर के हाथ से चाबुक ले मेरे सामने आकर बोला, "अब बुला गदाधरसिंह को, आकर तेरी जान बचाये।"

इतना कह उसने मुझे उसी चाबुक से मारना शुरू किया। मैं मछली की तरह तड़प रही थी, लेकिन उसे कुछ भी दया नहीं आती थी और वह बार-बार यही कहकर चाबुक मारता था कि "अब बता, मेरे कहे मुताविक चिट्ठी लिख देगी या नहीं ?" पर मैं भी इस बात का दिल में निश्चय कर चुकी थी कि चाहे कैसी ही दुर्दशा से मेरी जान क्यों न ली जाय, मगर उसके कहे मुताबिक चिट्ठी कदापि न लिखूंगी।

चाबुक की मार खाकर मैं जोर से चिल्लाने लगी। उसी समय दाईं तरफ से एक औरत दौड़ती हुई आई जिसने डपटकर दारोगा से कहा, "क्यों चाबुक मारकर इस बेचारी की जान ले रहे हो ? ऐसा करने से तुम्हारा मतलब कुछ भी न निकलेगा। तुम जो कुछ चाहते हो, मुझे कहो। मैं बात की बात में तुम्हारा काम करा देती हूँ।"

उस औरत की उम्र का पता बताना कठिन था, न तो वह कमसिन थी और न बूढ़ी ही थी, शायद तीस-पैंतीस वर्ष की अवस्था हो या इससे कुछ कम या ज्यादा हो। उसका रंग काला और बदन गठीला तथा मजबूत था, घुटने से कुछ नीचे तक का पाय- जामा और उसके ऊपर दक्षिणी ढंग की साड़ी पहने हुए थी, जिसकी लाँग पीछे की तरफ खुसी थी। कमर में एक मोटा कपड़ा लपेटे हुए थी जिसमें शायद कोई गठरी या और कोई चीज बँधी हुई हो।

उस औरत की बात सुनकर दारोगा ने चाबुक मारना बन्द किया और उसकी तरफ देखकर कहा, "तू कौन है?"