पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/२०६

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कोठरी घूमते हुए हमारे कमरे में न आ जायें, अस्तु, उसने एक महीन चादर मुंह पर ओढ़ ली और इस ढंग से लेट गया कि दरवाजा तथा तिलिस्मी चबूतरा इन दोनों की तरफ जिधर चाहे बिना सिर हिलाए देख सके। आधे घण्टे के बाद भूतनाथ के कमरे का दरवाजा खुला और उन्हीं पांचों में से एक आदमी ने कमरे के अन्दर झाँककर देखा। जब उसे मालूम हो गया कि दोनों आदमी बेखबर सो रहे हैं, तो वह धीरे से कमरे के अन्दर चला आया और उसके बाद बाकी के चारों आदमी भी कमरे में चले आये। पाँचों आदमी (या जो हों)एक ही रंग-ढंग का लबादा या बुर्का ओढ़े हुए थे, केवल आंख की जगह जाली बनी हुई थी जिससे देखने में किसी तरह की अड़चन न पड़े। उन पांचों ने बड़े गौर से बलभद्र- सिंह की सूरत देखी और एक ने कागज का एक लिफाफा उनके सिरहाने की तरफ रख दिया, फिर भूतनाथ के पास आया और उसके सिरहाने भी एक लिफाफा रखकर अपने साथियों के पास चला गया। कई क्षण और ठहरकर ये पांचों आदमी कमरे के बाहर निकल गये और दरवाजे को भी उसी तरह घुमा दिया जैसा पहले था। उसी समय भूतनाथ भी उन पांचों में से किसी को पकड़ लेने की नीयत से चारपाई पर से उठ खड़ा हुआ और कमरे के बाहर निकला मगर कोई दिखाई न पड़ा। उसी जगह नीचे उतर जाने के लिए सीढ़ियां थीं, भूतनाथ ने समझा कि ये लोग इन्हीं सीढ़ियों की राह नीचे उतर गए होंगे, अस्तु वह भी शीघ्रता के साथ नीचे उतर गया और घूमता हुआ बीच वाले रमने में पहुँचा मगर उन पांचों में से कोई भी दिखाई न दिया। भूतनाथ ने सोचा कि आखिर वे लोग घूम-फिरकर उसी तिलिस्मी चबूतरे के पास पहुंचेंगे, इसलिए पहले ही से वहाँ चलकर छिप रहना चाहिए। वह अपने को छिपाता हुआ उस तिलिस्मी चबूतरे के पास जा पहुँचा, और पीछे की तरफ जाकर उसकी आड़ में छिपकर बैठ गया।

भूतनाथ को आड़ में छिपकर बैठे हुए आधे घण्टे से ज्यादा बीत गया मगर किसी की सूरत दिखाई न पड़ी, तब वह उठकर उस चबूतरे के सामने की तरफ आया जिधर का मुंह खुला हुआ था। वह पत्थर का तख्ता जो हटकर जमीन के साथ लग गया था अभी तक खुला हुआ था। भूतनाथ ने उसके अन्दर की तरफ झांककर देखा मगर अन्धकार के सबब से कुछ दिखाई न पड़ा, हां, उसके अन्दर से कुछ बारीक आवाज जरूर आ रही थी जिसे समझना कठिन था। भूतनाथ पीछे की तरफ हट गया और सोचने लगा कि अब क्या करना चाहिए। इतने ही में अन्दर की तरफ से कुछ खड़खड़ाहट की आवाज आई और वह पत्थर का तख्ता हिलने लगा जो चबूतरे के पल्ले की तरह अलग हो गया था। भूतनाथ उसके पास से हट गया और वह उसका पल्ला चबूतरे के साथ धीरे से लगकर ज्यों-का-त्यों हो गया। उस समय भूतनाथ यह कहता हुआ वहां से रवाना हुआ, "मालूम होता है वे लोग किसी दूसरी राह से इसके अन्दर पहुँच गये!"

भूतनाथ घूमता हुआ फिर अपने कमरे में चला आया और अपनी चारपाई पर से उस लिफाफे को उठा लिया जो उन लोगों में से एक ने उसके सिरहाने रख दिया था। शमादान के पास जाकर लिफाफा खोला और उसके अन्दर से खत निकालकर पढ़ने लगा। यह लिखा हुआ था-