पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/२३

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भूतनाथ–-ठीक है मगर उन पर कैसी मुसीबत आ पड़ी थी उसका हाल आपको शायद मालूम नहीं।

गोपालसिंह--नहीं, बल्कि उसका खुलासा हाल दरियाफ्त करने के लिए मैंने एक आदमी रोहतासगढ़ में ज्योतिषीजी के पास भेजा है और एक पत्र भी लिखा है मगर अभी तक जवाब नहीं आया। तो क्या कमलिनी के साथ तुम भी वहाँ गये थे ?

भूतनाथ--जी हाँ, मैं कमलिनी के साथ था।

गोपालसिंह--तब तो मुझे सब खुलासा हाल तुम्हारी ही जुबानी मालूम हो सकता है, अच्छा कहो कि क्या-क्या हुआ?

भूतनाथ--मैं सब हाल आपसे कहता हूँ और उसी के बीच में अपनी तबाही और बर्बादी का हाल भी कहता हूँ।

इतना कह भूतनाथ ने किशोरी, कामिनी, लक्ष्मीदेवी, भगवनिया, श्यामसुन्दर- सिंह और बलभद्रसिंह का कुल हाल जो ऊपर लिखा जा चुका है कहा और इसके बाद रोहतासगढ़ किले के अन्दर जो कुछ हुआ था और कृष्ण जिन्न ने जो कुछ काम किया था वह सब भी कहा।

पलंग पर पड़े राजा गोपालसिंह, भूतनाथ की कुल बातें सुन गए और जब वह चुप हो गया तो उठ कर एक ऊँची गद्दी पर जा बैठे जो पलंग के पास ही बिछी हुई थी। थोड़ी देर तक कुछ सोचने के बाद वे बोले, "हां, तो इस ढंग से मालूम हुआ कि तारा वास्तव में लक्ष्मीदेवी है।"

भूतनाथ--जी हाँ, मुझे इस बात की कुछ भी खबर न थी।

गोपालसिंह--यह हाल बड़ा ही दिलचस्प है, अच्छा कृष्ण जिन्न की चिट्ठी मुझे दो, मैं देखूँ।

भूतन--(चिट्ठी देकर) आशा है कि इसमें कोई बात मेरे विरुद्ध लिखी हुई न होगी।

गोपालसिंह--(चिट्ठी देखकर) नहीं इसमें तो तुम्हारी सिफारिश की है और मुझे मदद देने के लिए लिखा है।

भूतनाथ--कृष्ण जिन्न को आप जानते हैं ?

गोपालसिंह--वह मेरा दोस्त है, लड़कपन ही से मैं उसे जानता हूँ, उसे मेरे कैद होने की कुछ भी खबर न थी, पाँच-सात दिन हुए हैं, जब वह मुबारकबाद देने के लिए मेरे पास आया था।

भूतनाथ–-तो मैं उम्मीद करता हूँ कि इस काम में आप मेरी मदद करेंगे।

गोपालसिंह--हाँ-हाँ, मैं इस काम में हर तरह से मदद देने के लिए तैयार हूँ। क्योंकि यह काम वास्तव में मेरा ही काम है, मगर मेरी समझ में नहीं आता कि मैं क्या मदद कर सकूँगा क्योंकि मुझे इन बातों की कुछ भी खबर न थी और न है।

भूतनाथ--जिस तरह की मदद मैं चाहता हूँ अर्ज करूँगा, मगर उसके पहले मैं यह जानना चाहता हूँ कि क्या आप राजा वीरेन्द्रसिंह और कमलिनी इत्यादि से मिलने के लिए रोहतासगढ़ जायेंगे ?