तैयार हैं, औरों की बात दूर, खास राजा वीरेन्द्रसिंह से भिड़ जाने की हिम्मत रखते हैं।
भूतनाथ--बेशक ऐसा ही है और इसीलिए मैं कोई बात तुम लोगों से नहीं छिपाता।
इतना कह कर भूतनाथ ने अपना हाल कहना आरम्भ किया। जो कुछ अपनी स्त्री से कह चुका था वह तथा और भी बहुत-सी बातें उसने उन लोगों से कहीं और इसके बाद कई बहादुरों को कई तरह के काम करने की आज्ञा दे फिर अपनी स्त्री के पास चला गया।
दूसरे दिन सवेरे जब भूतनाथ बाहर आया तब मालूम हुआ कि उसके बहादुर सिपाहियों में से चालीस आदमी उसकी आज्ञानुसार 'लामाघाटी' के बाहर जा चुके हैं।
भूतनाथ भी वहाँ से रवाना होने के लिए तैयार ही था और अपनी स्त्री से बिदा होकर बाहर निकला था, अस्तु वह भी एक आदमी को लेकर चल पड़ा और दो ही घण्टे बाद 'लामाघाटी' के बाहर मैदान में जमानिया की तरफ जाता हुआ दिखलाई देने लगा।
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जो कुछ हम ऊपर लिख आये हैं, उसके कई दिन बाद जमानिया में दोपहर दिन के समय जब राजा गोपालसिंह भोजन इत्यादि से छुट्टी पाकर अपने कमरे में चारपाई पर लेटे हुए एक-एक करके बहुत-सी चिट्ठियों को पढ़-पढ़कर कुछ सोच रहे थे उसी समय चोबदार ने भूतनाथ के आने की इत्तिला की। गोपालसिंह ने भूतनाथ को अपने सामने हाजिर करने की आज्ञा दी। भूतनाथ हाजिर हुआ और सलाम करके चुपचाप खड़ा हो गया। उस समय वहाँ पर इन दोनों के सिवाय और कोई न था।
गोपालसिंह--कहो भूतनाथ ! अच्छे तो हो, इतने दिनों तक कहाँ थे और क्या करते थे?
भूतनाथ--आपसे बिदा होकर मैं बड़ी मुसीबत में पड़ गया।
गोपालसिंह-–सो क्या!
भूतनाथ--कमलिनी के मकान की बर्बादी का हाल तो आपको मालूम हुआ ही होगा।
गोपालसिंह--हाँ मैं सुन चुका हूँ कि कमलिनी के मकान को दुश्मनों ने उजाड़ दिया और उसके यहाँ जो कैदी थे वे भाग गये।
भूतनाथ--ठीक है, तो क्या आप किशोरी, कामिनी और तारा का हाल भी सुन चुके हैं जो उस मकान में थीं?
गोपालसिंह--उनका खुलासा हाल तो मुझे मालूम नहीं हुआ मगर इतना सुन चुका हूँ कि अब वे सब कमलिनी के साथ रोहतासगढ़ में जा पहुंची हैं।