भैरोंसिंह--मैं उसका पता लगाता हुआ इसी लश्कर में आ पहुंचा था। उस समय टोह लेता हुआ जब मैं किशोरी के खेमे के पास पहुंचा तो पहरे के सिपाही को बेहोश और खेमे का पर्दा हटा हुआ देख मुझे किसी दुश्मन के अन्दर जाने का गुमान हुआ और मैं भी उसी राह से खेमे के अन्दर चला गया। जब वहाँ की अवस्था देखी और उसके मुंह से निकली हुई बातें सुनीं, तब शक हुआ कि यह मनोरमा है, मगर निश्चय तब ही हुआ जब उसका चेहरा साफ किया गया और आपने भी पहचाना। अब आप कृपा कर यह बताइए कि किशोरी, कामिनी और कमला क्योंकर जीती बची और जो तीनों मारी गई वे कौन थीं?
तेजसिंह-हमें इस बात का पता लग चुका था कि भेष बदले हुए मनोरमा हमारे लश्कर के साथ है, मगर जैसा कि तुमसे कह चुके हैं, उद्योग करने पर भी हम उसे पह- चान न सके। एक दिन हम और राजा साहब संध्या के समय टहलते हुए खेमे से दूर चले गये और एक छोटे टीले पर चढ़कर अस्त होते हुए सूर्य की शोभा देखने लगे। उस समय कृष्ण जिन्न का भेजा हुआ एक सवार हमारे पास आया और उसने एक चिट्ठी राजा साहब के हाथ में दी, राजासाहब ने चिट्ठी पढ़कर मुझे दे दी। उसमें लिखा था--'मुझे इस बात का पूरा-पूरा पता लग चुका है कि कई सहायकों को साथ लिए और भेष बदले हुए मनोरमा आपके लश्कर में मौजूद है और उसके अतिरिक्त और भी कई दुष्ट किशोरी और कामिनी के साथ दुश्मनी करना चाहते हैं। इसलिए मेरी राय है कि बचाव तथा दुश्मनों को धोखा देने के लिए कामिनी और कमला को कुछ दिन तक छिपा देना चाहिए और उनकी जगह सूरत बदलकर दूसरी लौंडियों को रख देना चाहिए। इस काम के लिए मेरा एक तिलिस्मी मकान, जो आपके रास्ते में ही कुछ दूर हटकर पड़ेगा मुनासिब है, और मैंने इस काम के लिए वहाँ पूरा इन्तजाम भी कर दिया है। लौंडियाँ भी सूरत बदलने और खिदमत करने के लिए भेज दी हैं, क्योंकि आपकी लौंडियों की सूरत बदलना ठीक न होगा और लश्कर में लौंडियों की कमी से लोगों को शक भी हो जायगा। अब आप बहुत जल्द इन्तजाम करके उन तीनों को वहाँ वहुँचायें, मैं भी इन्त- जाम करने के लिए पहले ही से उस मकान में जाता हूँ-" इत्यादि, इसके बाद उस मकान का पूरा-पूरा पता लिखकर अपना दस्तखत एक निशान के साथ कर दिया था जिसमें हम लोगों को चिट्ठी लिखने वाले पर किसी तरह का शक न हो, और उस मकान के अन्दर जाने की तरकीब भी लिख दी थी।
कृष्ण जिन्न की राय को राजा साहब ने स्वीकार किया और पत्र का उत्तर देकर वह सवार बिदा कर दिया गया। रात के समय किशोरी, कामिनी और कमला को ये बातें समझा दी गयीं और उन्होंने उसी दुष्ट मनोरमा की जुबानी दोपहर के बाद यह कहला भेजा कि 'हमने सुना है कि यहाँ से थोड़ी ही दूर पर कोई तिलिस्मी मकान है, यदि आप चाहें तो हम लोग इस मकान की सैर कर सकती हैं' इत्यादि। मतलब यह कि इसी बहाने से मैं खुद उन तीनों को रथ पर सवार करा के उस मकान में ले गया और कृष्ण जिन्न को वहां मौजूद पाया। उसने अपने हाथ से अपनी तीन लौंडियों को किशोरी, कामिनी और कमला बना हमारे रथ पर सवार कराया और हम उन्हें लेकर इस लश्कर
च० स०-4