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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/२२९

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हमारे ऐयार की आवाज सुनकर मनोरमा चौंकी और उसने घूमकर पीछे की तरफ देखा तो हाथ में खंजर लिए हुए भैरोंसिंह पर निगाह पड़ी। यद्यपि भैरोंसिंह पर नजर पड़ते ही वह जिन्दगी से नाउम्मीद हो गई, मगर फिर उसने तिलिस्मी खंजर का वार भैरोंसिंह पर किया, मगर भैरोंसिंह पहले ही से होशियार था और उसके पास भी तिलिस्मी खंजर मौजूद था, अतः उसने अपने खंजर पर इस ढंग से मनोरमा के खंजर का वार रोका कि मनोरमा की कलाई भैरोंसिंह के खंजर पर पड़ी और वह कट कर तिलिस्मी खंजर सहित दूर जा गिरी। भैरोंसिंह ने इतने ही पर सब्र न करके उसी खंजर से मनोरमा की एक टाँग काट डाली और इसके बाद जोर से चिल्लाकर पहरे वालों को आवाज दी।

पहरे वाले तो पहले ही से बेहोश पड़े हुए थे, मगर भैरोंसिंह की आवाज ने लौंडियों को होशियार कर दिया और बात की बात में बहुत-सी लौंडियाँ उस खेमे के अन्दर आ पहुँची जो वहाँ की अवस्था देखकर जोर-जोर से रोने और चिल्लाने लगीं।

थोड़ी देर में उस खेमे के अन्दर और बाहर भीड़ लग गई। जिधर देखिये उधर मशाल जल रही है और आदमी पर आदमी टूटा पड़ता है। राजा वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह भी उस खेमे में गये ओर वहाँ की अवस्था देखकर अफसोस करने लगे। तेजसिंह ने हुक्म दिया कि तीनों लाशें उसी जगह ज्यों की त्यों रहने दी जायें और मनोरमा, (जो कि चेहरा धुल जाने कारण पहचानी जा चुकी थी) वहाँ से उठवाकर दूसरे खेमे में पहुंचाई जाय, उसके जख्म पर पट्टी लगाई जाय और उस पर सख्त पहरा रहे। इसके बाद भैरों- सिंह और तेजसिंह को साथ लिये राजा वीरेन्द्रसिंह अपने खेमे में आये और बातचीत करने लगे। उस समय खेमे के अन्दर सिवाय इन तीनों के और कोई भी न था। भैरोंसिंह ने अपना हाल बयान किया और कहा, "मुझे इस बात का बड़ा दुःख है कि किशोरी, कामिनी और कमला का सिर कट जाने के बाद मैं उस खेमे के अन्दर पहुँचा !"

तेजसिंह-अफसोस की कोई बात नहीं है, ईश्वर की कृपा से हम लोगों को यह बात पहले ही मालूम हो गई थी कि मनोरमा हमारे लश्कर के साथ है।

भैरोंसिंह-अगर यह बात मालूम हो गई थी तो आपने इसका इन्तजाम क्यों नहीं किया और इन तीनों की तरफ से बेफिक्र क्यों रहे?

तेजसिंह-हम लोग बेफिक्र नहीं रहे बल्कि जो कुछ इन्तजाम करना वाजिब था किया गया। तुम यह सुनकर ताज्जुब करोगे कि किशोरी, कामिनी और कमला मरी नहीं बल्कि ईश्वर की कृपा से जीती हैं, और लौंडी की सूरत में हर दम पास रहने पर भी मनोरमा ने धोखा खाया।

भैरोंसिंह-मनोरमा ने धोखा खाया और वे तीनों जीती हैं ? तेजसिंह हाँ, ऐसा ही है। इसका खुलासा हाल हम तुमसे कहते हैं, मगर पहले यह बताओ कि तुमने मनोरमा को कैसे पहचाना? हम तो कई दिनों से पहचानने की फिक्र में लगे हुए थे, मगर पहचान न सके। क्योंकि मनोरमा के कब्जे में तिलिस्मी खंजर का होना हमें मालूम था और हम हर लौंडी की उंगलियों पर तिलिस्मी खंजर जोड़ की अंगूठी देखने की नीयत से निगाह रखते थे।